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280 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
दव्वत्थिगं पज्जवत्थिगं दव्वय-पज्जवत्थिगं च।
-(नन्दिसूत्र पृ. 269) (2) णियदिवाद :- जत्तु जदा जेण जहा जस्स य णियमेण होदि तत्त्तु तदा।
तेण तहा तस्स हवे इदि वादो णियदिवादो दु।। गो 5 क.882) (3) विण्णाणवाद- (बोद्ध-विसेसो मण्णदे) पडिभासमाणस्स असेसस्स
बत्थुणो णाण-सरूवंतो पविठ्ठत्प्प सिद्धीए संवेदणं पारमंत्थिगं तच्चं। . . तधाहि जं अवभासदे तं णाणं जधा सुहादी, अवभासते च भावा
(न्यायक 119) (4) सद्दवादं-(सद्दवंभवादो) सयलं योगजमयोगजं वा पच्चक्खं
सद्द-बंभुल्लेहेव अवभासदे। (न्या पृ. 139). (5) पहाणवाद- सत्त-रज-तमसं सम्म-अवठ्ठा पहाण। पहाणस्य वादो
पहाणवादो संखवादो। (6) दव्ववाद- (दव्वेगंतवादी णिच्चवादो) जं काविलं दरिसणं एयं
दव्वट्ठियस्य वत्तव्वं (7) पुरिसवादं - आलसड्डो णिरुच्छाहो फलं किं चि ण भंजदे।
थणक्खीरादिपाणं वा पउस्सेण विणा न हि।। (गो क 890) पुरिसवादो-पुरिसदुवेदवादो-एक्को चेव महत्वा पुरिसो देवा य।
सव्वंग-णिगूढो वि य सचेदणो णिग्गुणो परमो।। गो क.881 इच्चादि-विविह-वदणं वण्णणं जस्सिं अस्थि सो दिट्टिवादो त्ति घट्टदे। समयायंगसुत्तम्हि दुवालसंगे पिडगे गणिपिडगे दिट्ठिवादं वारहंगं पण्णत्तं। अस्सिं पण्हो कदो- से किं तं दिट्ठिवाए?
अस्स पण्हस्स उत्तरो- दिट्ठिवाए णं सव्व-भाव-परुवणया आघरिज्जति। पुणो पण्ण-कदो णो तध वि पण्णत्तं - से समासओ पंचविहे पण्णत्ते। तं जहा-परिकम्म सुत्ताई पुंवगयं अणुओगो चूलिया। छक्खंडागम-धवला टीगाए वि दिद्धिवादस्स पंचभेदा
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