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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 275
सामाजिक व्यवस्था :- परिवार, कुटुम्ब, वर्ण, जाति, अध्ययन, अध्यापन, श्रेणी विभाजन आदि सभी कुछ सामाजिक व्यवस्था में आते हैं। विवाह प्रसंग, माता-पिता, भाई-बंधु, उत्सव, कला, कौशल, शिक्षानीति, रीति-रिवाज आदि समाज की व्यवस्थाएँ हैं। विपाकसूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन के प्रारम्भिक चरण में समाज के विविध महत्वपूर्ण प्रसंगों का उल्लेख किया गया है। इस उल्लेख में कुल सम्पन्नता, बल सम्पन्नता, विद्या, साधना, नियम, उपनियम, तपश्चर्या, श्रावक-श्राविका, साधु-साध्वी आदि का उल्लेख किया गया है।
शिक्षा :- द्वितीय अध्ययन के उज्झितक प्रसंग में विविध प्रकार की विद्याओं का उल्लेख है। 72 कलाएँ, गणिकाओं के 64 गुण, 29 विषयगुण, 21 रतिगुण, 32 कामशास्त्र के अंग, सुक्तनवअंग, 18 देशी भाषाएँ, गीत-रति, गांधर्व, नाट्यकला, उत्तमगतिगमन, स्तनसौंदर्य, विलासभवन, विद्याशाला, विद्याकेन्द्र आदि का इसमें उल्लेख है। विद्यार्थी सम्मान, वेदज्ञाता का मान आदि भी विपाकसूत्र में वर्णित है। सोमदत्त चार वेदों में निपुण था। सोमदत्त का पुत्र बृहस्पतिदत्त भी वेद ज्ञानी था, परन्तु युवावस्था को प्राप्त होते ही वह धूलिक्रीड़ा को महत्व देने लगा, अर्थात् अपनी विद्या को छोड़ कर अन्य विद्याओं का उपयोग करने लगा, इत्यादि उल्लेख हुआ है।
विपाकसूत्र में वर्णित आयुर्विज्ञान :- आयु के आठ विज्ञान हैं :- 1. कुमारभिच्च (कौमारभृत्य) (बाल्यरोग की पहचान)
2. सालाग (शालाक्य) (नाक-कान आदि वेदना) 3... शल्यहत्थ (शल्यहत्य) (गोली आदि निकालना) 4. कायतिगिच्छा (कायचिकित्सा) (देहगत उपचार) 5. जंगोल (जांगुल) (विष विमर्दन करना) 6. भुएविज्जा (भूतविद्या) (भूत निग्रह करना) 7. रसायण (व्याधिविनाशक रसों का उत्पादन) 8. वाजिकरण (बलवर्धक औषिधियों का निर्माण करना) विपाकसूत्र में वर्णित रोग :- खुजली, कोढ़, जलोदर, भगंदर, बवासीर,
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