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202 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
विषयवस्तु ईसा की चौथी-पाँचवीं शताब्दी के पूर्व ही परिवर्तित हो चुकी थी और छठी शताब्दी के अन्त तक वर्तमान अन्तकृद्दशा अस्तित्व में आ चुकी थी।
संदर्भ :1. स्थानांग- (सं. मधुकर मुनि) दशम स्थान सूत्र 110 एवं 113 .
दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कम्मविवागदसाओ, उवासंगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ आयारदसाओ, पण्हवागरणदसाओ, बंधदसाओ, दोगिद्धिदसाओ, दीहंदसाओं, संखेवियदसाओ।
अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहाँ । . णमि मातंगे सोमिले, रामगुत्ते सुदंसणे चेव।। जमाली य भगाली य, किंकसे चिल्लएतिय।
फाले अंबडपुत्ते य एमे ते एस आहिता।। ___ 2. समवायांग- (सं. मधुकर मुनि) प्रकीर्णक समवाय, सूत्र, 539-540 से किं तं अंतगडदसाओ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जवं मद्दवं च, सोअंच सच्चसहियं, सत्तरसविहो य संजमो, उत्तम, च बंभ, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तह अप्पमायजोगो, सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोहंपि लक्खणाई। ___ पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउब्विहकम्मखयम्मि जह केवलस्स लंभो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ मुणिहिं, पायोवगओ य जो जहिं, जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता अंतगडो मुणिवरो तमरयोघविप्पमुक्को, मोक्खसुहमणुत्तरं च पत्ता।
एए अण्णे य एवामाइअत्था वित्थारेणं परूवेई। अंतगडदसासुणं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेन्जाओ घडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ।
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