________________
206 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
उल्लेखित अन्तकृत्दशा की विषयवस्तु बदल चुकी थी किन्तु वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृत्दशा का पूरी तरह निर्माण भी नहीं हो पाया था। केवल सात ही वर्ग बने थे। वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृत्दशा की रचना नन्दीसूत्र में तत्संबंधी विवरण लिखे जाने के पूर्व निश्चित रुप से हो चुकी थी क्योंकि नन्दीसूत्रकार उसमें 10 अध्ययन होने का कोई उल्लेख नहीं करता है। साथ ही वह आठ वर्गों की चर्चा करता है। वर्तमान अन्तकृत्दशा के भी आठ वर्ग ही हैं। .. ____ उपर्युक्त विवरण से हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृत्दशा की विषयवस्तु नन्दीसूत्र की रचना के कुछ समय पूर्व तक अस्तित्व में आ गई थी। ऐसा लगता है कि वल्लभी वाचना के पूर्व ही प्राचीन अन्तकृत्दशा के अध्यायों की या तो उपेक्षा कर दी गयी या उन्हें यत्र-तत्र अन्य ग्रंथों में जोड़ दिया गया था और इस प्रकार प्राचीन अन्तकृत्दशा की विषयवस्तु के स्थान पर नवीन विषयवस्तु रख दी गयी। यहाँ प्रश्न स्वाभाविक रुप से उत्पन्न हो सकता है कि ऐसा क्यों किया गया। क्या विस्मृति के आधार पर प्राचीन अन्तकृत्दशा की विषयवस्तु लुप्त हो गयी अथवा उसकी प्राचीन विषयवस्तु सप्रयोजन वहाँ यहाँ से अलग कर दी गई। . ____ मेरी मान्यता यह है कि विषयवस्तु का यह परिवर्तन विस्मृति के कारण नहीं, परन्तु सप्रयोजन ही हुआ है। अन्तकृद्दशा की प्राचीन विषयवस्तु में जिन दस व्यक्तित्वों के चरित्र का चित्रण किया गया था उनमें निश्चित रुप से मातंग, अम्बड, रामपुत्त, भयाली (भगाली) जमाली आदि ऐसे हैं जो चाहे किसी समय तक जैन परम्परा में सम्मान्यरुप से रहे हों किन्तु अब वे जैन परम्परा के विरोधी या बाहरी मान लिये गये थे। जिनप्रणीत अंगसूत्रों में उनका उल्लेख रखना समुचित नहीं माना गया। जिस प्रकार प्रश्नव्याकरण से ऋषिभाषित को सप्रयोजन अलग किया गया उसी प्रकार अन्तकृद्दशा से इनके विवरण को भी सप्रयोजन अलग किया गया। यह भी सम्भव है कि जब जैन परम्परा में श्रीकृष्ण को वासुदेव के रुप में स्वीकार कर लिया गया तो उनके तथा उनके परिवार से संबंधित कथानकों को कहीं स्थान देना आवश्यक था। अतः अन्तकृत्दशा की प्राचीन विषयवस्तु को बदल कर उसके स्थान पर कृष्ण और उनके परिवार से संबंधित पांच वर्गों को जोड़ दिया गया।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org