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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 199 भगवतीसूत्र में जमाली को भगवान् महावीर के क्रियमाणकृत के सिद्धांत का विरोध करते हुए दर्शाया गया है। श्वेताम्बर परम्परा जमाली को भगवान् महावीर का जामातृ भी मानती है। परवर्ती साहित्य नियुक्ति, भाष्य और चूर्णियों में भी जमाली का उल्लेख पाया जाता है और उन्हें एक निह्नव बताया गया है। स्थानांग की सूची के अनुसार अन्तकृद्दशा का सातवाँ अध्ययन भयाली (भगाली) है। "भगाली मेतेज्ज"। स्थानांग की सूची में अन्तकृत्दशा के आठवें अध्ययन का नाम किंकम या किंकस है। वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृत्दशा में छठे वर्ग के द्वितीय अध्याय का नाम किंकम है, यद्यपि यहाँ तत्सम्बन्धी विवरण का अभाव है। स्थानांग में अन्तकृत्दशा के 9वें अध्ययन का नाम चिल्वकया चिल्लवाक है। कुछ प्रतियों में इसके स्थान पर "पल्लेतीय" ऐसा नाम भी मिलता है इस सम्बन्ध में हमें कोई विशेष जानकारी नहीं है। दिगम्बर आचार्य अकलंकदेव भी इस सम्बन्ध में स्पष्ट नहीं है। स्थानांग में दसवें अध्ययन का नाम फालअम्बडपुत्त बताया है। जिसका संस्कृतरुप पालअम्बष्ठपुत्र हो सकता है। अम्बड संन्यासी का उल्लेख हमें भगवतीसूत्र में विस्तार से मिलता है। अम्बड के नाम से एक अध्ययन ऋषिभाषित में भी है। यद्यपि विवाद का विषय यह हो सकता है कि जहाँ ऋषिभाषित और भगवती उसे अम्बड परिव्राजक कहते हैं यहाँ उसे अम्बडपुत्त कहा गया है। एतिहासिक दृष्टि से गवेषणा करने पर हमें ऐसा लगता है कि स्थानांग में अन्तकृत्दशा के जो 10 अध्ययन बताये गये हैं वे यथार्थ व्यक्तियों से सम्बन्धित रहे होंगे क्योंकि उनमें से अधिकांश के उल्लेख अन्य स्रोतों से भी उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनका उल्लेख बौद्ध परम्परा में मिल जाता है यथा-रामपुत्त, सोमिल, मातंग आदि। अन्तकृत्दशा की विषयवस्तु के संबंध में विचार करते समय हम सुनिश्चितरुप से इतना कह सकते हैं कि इन सबमें स्थानांग संबंधी विवरण अधिक प्रामाणिक तथा ऐतिहासिक सत्यता को लिये हुए है। समवायांग में एक ओर इसके दस अध्ययन बताये गये हैं तो दूसरी ओर समवायांगकार सात वर्गों की भी चर्चा करता है इससे ऐसा लगता है कि समवायांग के उपर्युक्त विवरण लिखे जाने के समय स्थानांग में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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