________________
174 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
अपने व्रत को भंग कर लेता है। प्रायश्चित का पालन करते हुए वह
पुनः साधना पथ पर दृढ़ होता है। 4. सुरादेव2- सुरादेव वाराणसी का निवासी था। पुत्र-हत्या का वीभत्स
रुप इसे अपने साधना पथ से विचलित नहीं कर पाया लेकिन देव द्वारा 16 भयंकर रोग एक साथ शरीर में उत्पन्न कर देने की धमकी से अपने व्रत को वह खंडित कर बैठा। तत्पश्चात् प्रायश्चित करके
पुनः आराधना में तत्पर हुआ। 5. चुल्लशतक:- आलभिका निवासी गाथापति श्रावक चुल्लशतक · ने देव द्वारा पुत्र हत्या की भयंकर वेदना को समभावपूर्वक सहन किया परंतु अपनी स्वर्ण मुद्राएं तथा अन्यान्य सम्पत्ति को बिखेर देने की धमकी से अपने पथ से वह विचलित हो गया। बाद में प्रायश्चित का विधान करने के पश्चात् पुनः साधना के पथ पर अग्रसर हुआ। कुंडकौलिक24- काम्पिल्यपुर निवासी गाथापति कुंडकौलिक को साधना पथ से विचलित करने के लिए देव द्वारा गोशालक मत की प्रशंसा, कुंडकौलिक का अपने पथ पर दृढता के साथ स्थिर रहना तथा तर्कपूर्ण ढंग से नियतिवाद का खंडन करना, देव का निरूत्तर होना। सकडालपुत्र-- पोलासपुर निवासी आजीवक मतानुयायी गोशालक को श्रावक व्रत से विचलित करने के लिए स्वयं गोशालक द्वारा असफल प्रयत्न। बाद में देव द्वारा पुत्र हत्या के घृणित कर्म को समभावपूर्वक सहन करना लेकिन पत्नी-वध की धमकी से व्रत को खंडित कर लेना। भग्न व्रत में पुनः स्थित होकर साधना पथ पर अग्रसर होना। महाशतक-- राजगृह निवासी महाशतक अपनी तेरहवीं व्रतहीन पत्नी रेवती द्वारा कामोद्दीपक व्यवहार करने से अविचलित रहा परंतु वह और अधिक उन्मुक्त व्यवहार करने लगी इससे कुपित होकर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org