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162 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
कला और धर्म :- ज्ञाताधर्मकथा में विभिन्न कलाओं के नामों का उल्लेख भी महत्वपूर्ण है। 72 कलाओं का यहाँ उल्लेख है, जिसकी परम्परा परवर्ती प्राकृत ग्रन्थों में भी प्राप्त है।' इन कलाओं में से अनेक कलाओं का व्यावहारिक प्रयोग भी इस ग्रन्थ के विभिन्न वर्णनों मे प्राप्त होता है। मल्लि की कथा में उत्कृष्ट चित्रकला का विवरण प्राप्त है। चित्रशालाओं के उपयोग भी समाज में प्रचलित थे। ज्ञाताधर्मकथा यद्यपि धर्म और दर्शन-प्रधान ग्रन्थ है। इसमें विभिन्न धार्मिक सिद्धान्तों और दर्शनिक मतों का विवेचन भी है। समाज में अनेक मतों को मानने वाले धार्मिक प्रचारक होते थे, जो व्यापारियों के साथ विभिन्न स्थानों की यात्रा कर अपने सिद्धान्तों का प्रचार करते थे। धन्य सार्थवाह की समुद्र यात्रा के समय अनेक परिव्राजक उसके साथ गए थे। यद्यपि इन परिवाजिकों के नाम एवं पहचान आदि अन्य ग्रन्थों से प्राप्त होती है। ब्राह्मण और श्रमण जैसे धार्मिक मत उनमें प्रमुख थे। आगे चलकर ऐसे धार्मिक प्रचारकों की एक स्थान पर राजा के समक्ष अपने-अपने मतों की परीक्षा भी प्रचलित हो गई थी। धार्मिक दृष्टि से ज्ञाताधर्मकथा में वैदिक परम्परा में प्रचलित श्रीकृष्ण कथा का भी विस्तार से वर्णन हुआ . है। श्रीकृष्ण, पांडव, द्रोपदी, आदि पात्रों के संस्कारित जीवन के अनेक प्रसंग वर्णित हैं। इस ग्रन्थ में पहली बार श्रीकृष्ण के नरसिंह रुप का वर्णन है, जबकि वैदिक ग्रन्थों में विष्णु का नरसिंहावतार प्रचलित है। ... समाज सेवा और पर्यावरण संरक्षण : - इस ग्रंथ के धार्मिक वातावरण में भी समाज सेवा और पर्यावरण-संरक्षण के प्रति सम्पन्न परिवारों का रुझान देखने को मिलता है। राजगृह के निवासी नन्द मणिकार द्वारा एक ऐसी वापी का निर्माण कराया गया था जो समाज के सामान्य वर्ग के लिए सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराती थी। वर्तमान युग में जैसे सम्पन्न लोग शहर से दूर वाड़ी का निर्माण कराते हैं उसी तरह यह पुष्करणी वापिका थी। उसके चारों ओर मनोरंजन पार्क थे। उनमें विभिन्न कलादीर्घाएं और मनोरंजन शालाएँ थी। राहगीरों और रोगियों के लिए चिकित्सा-केन्द्र भी थे।' इस प्रकार का विवरण भले ही धार्मिक दृष्टि से आसक्ति का कारण रहा हो, किन्तु समाज सेवा और पर्यावरण-संरक्षण के लिए प्रेरणाप्रद है।
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