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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 151 सूत्र शैली, इस बाबत संकेत करती है कि आगम के सूत्र वाक्य से जुड़े हुए हैं, पदों में लालित्य है, काव्य तत्व भी रमणीयता से युक्त है, इनमें छंद माधुर्य है, ज्ञेय तत्व की भी प्रमुखता है और विषय विवेचन में चमत्कार है। व्याख्याप्रज्ञप्ति का नामकरण :- मूलतः प्राकृत की दृष्टि से विचार करते हैं तो इसका नाम विवाहपण्णति या वियाहपण्णति नाम है। इसका संस्कृत रुप व्याख्याप्रज्ञप्ति होता है। व्याख्याकारों ने इस ग्रंथ का नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति किया है, समवायांग और नन्दीसूत्र में विवाहपण्णत्ति नाम दिया गया है। षट्खंडागम की धवलाटीका के खंड -1, पुस्तक 1 में आगमों की चर्चा करते हुए व्याख्याप्रज्ञप्ति को वियाहपण्णत्ति (1/1/100) नाम दिया गया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति का एक प्रचलित नाम भगवती भी है, क्योंकि टीकाकारों ने व्याख्याप्रज्ञप्ति से पूर्व भगवती या भगवई का प्रयोग किया, इसलिए इसका नाम भगवती भी है। व्याख्या प्रज्ञप्ति का अर्थ :- विवाहपण्णति या वियाहपण्णति का अर्थ मूलतः बाधारहित वस्तु तत्व का विवेचन करना है। विवाध अर्थात् निर्बाध रुप से या प्रामाणिक * रूप से वस्तुतत्व का प्रज्ञप्ति अर्थात् कथन करना, विवाहपण्णति है। दूसरे रुप में यह भी कथन किया जा सकता है कि जिस आगम में विशेष व्याख्यान या विविध विषयों का विवेचन हो, उसे व्याख्याप्रज्ञप्ति कहते हैं। गोम्मटसार जीवकांड में इसकी विस्तृत व्याख्या करते हुए लिखा है : विशेषैः बहुप्रकारैः आख्यातं किमस्ति जीवः किं नास्तिजीवः किमेको जीवः किमनेको जीवः किं नित्यो जीवः किमनित्यो जीवः किं वक्तव्यो जीवः किमवक्तव्योः जीवः इत्यादीनि षष्ठिसहस्र संख्यानि भगवदर्हत्तीर्थकरसन्निधौ गणधरदेवप्रश्न वाक्यानि प्रज्ञाप्यन्ते कथ्यन्ते यस्यां सा व्याख्याप्रज्ञप्तिनामि । अर्थात् वि/विशेष - नाना प्रकार के जीव हैं, जीव नहीं हैं, जीव एक है, जीव अनेक हैं, जीव नित्य है, जीव अनित्य है, भगवन अर्हत् तीर्थंकर के प्रमुख गणधरदेव द्वारा पूछे गए इत्यादि साठ हजार प्रश्नपूर्ण वाक्यों का व्याख्या/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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