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138 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा
ऋद्धिमंत पुरुषों के प्रसंग में इसके पाँचवें भेद भावितात्मा (अनगार तप से ऋद्धि-अलौकिक शक्ति प्राप्त करने वाले) के स्थान पर छठें स्थान में इसके (भावितात्मा अनगार के) दो भेदों जंघाचारण अनगार और विद्याचारण अनगार को समविष्ट कर लेने से एक वृद्धि हो गयी है। जंघाचारण अनगार को तप के बल से पृथ्वी का स्पर्श किये बिना ही अधर गमनागमन की लब्धि प्राप्त होती है। विद्याचारण वे अनगर कहलाते हैं जिन्हें आकाश में गमनागमन की शक्ति प्राप्त होती है। उक्त उदाहरणों में पूर्व में वर्णित किसी भेद-विशेष के बदले उसके अवान्तर भेदों को सम्मिलित करने से संख्या में वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त कुछ विषयों के प्रसंग
पूर्व में वर्णित भेद-विशेष को बाद में छोड़ दिया गया है और उसके स्थान पर नये भेदों को समाविष्ट किया गया है, जो तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है। सुषमा के 7 और 10 लक्षण दो स्थलों पर वर्णित है।' इनमें दोनों स्थलों के विवरण में 5 लक्षण समान हैं। पाँच के अतिरिक्त मनः शुभता और वचः शुभता हैं। सुषमा के दस लक्षणों के प्रसंग में छठवें भेद मनःशुभता के स्थान पर इसके पाँच भेदों मनोज्ञ शब्द, मनोज्ञ रुप, मनोज्ञ गन्ध, मनोज्ञ रस और मनोज्ञ स्पर्श को समाविष्ट कर दस संख्या पूर्ण कर ली गई है। इसके सातवें भेद वचः शुभता को छोड़ दिया गया है जो युक्तियुक्त नहीं कहा जा सकता है।
इसी प्रकार पृथ्वी के सात और आठ भेदों के प्रतिपादन में सातवें भेद (7/24) के स्थान पर आठवें स्थान में दो भेदों अधः सत्तमा और ईषत्प्राग्भारा को सम्मिलित किया गया है।
सर्वजीवों के प्रसंग में जीव के सात और नौ प्रकार बताये गये हैं। दोनों में पाँच प्रकार समान हैं। सात प्रकारों के विवरण में छठें और सातवें प्रकार के रुप में त्रसकायिक और अकायिक का उल्लेख है। जबकि नौ प्रकारों के उल्लेख में त्रसकायिक के बदले इसके चार उपभेदों द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और पंचेन्द्रिय को सम्मिलित करना तो तर्कसंगत है परन्तु सातवें भेद अकायिक को छोड़ देना समीचीन प्रतीत नहीं होता है।
ऐसी ही विसंगति जम्बूद्वीप के अतीत उत्सर्पिणी एवं आगामी उत्सर्पिणी के
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