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________________ 108 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा 3. अज्ञानवादी:- जो यह मानते हैं कि मोक्ष के लिए ज्ञान नहीं बल्कि तप आवश्यक है। 4. विनयवादी :- जो विनय को ही मोक्ष का साधन मानते हैं। अज्ञानवाद स्वरुप :- अज्ञानवादियों के सन्दर्भ में दो प्रकार के मत मिलते हैं- एक तो वे अज्ञानवादी हैं जो स्वयं के अल्प मिथ्याज्ञान से गर्वोन्मत्त समस्त ज्ञान को अपनी विरासत मानते हैं, जबकि यथार्थतः उनका ज्ञान पल्लवग्राही होता है। ये तथाकथित शास्त्रज्ञानी वीतराग सर्वज्ञ की अनेकान्तवाद तत्त्वज्ञान से युक्त वाणी को असत्य समझकर उसे संशयवाद की संज्ञा देकर ठुकरा देते हैं। दूसरे अज्ञानवादी अज्ञान को ही श्रेयस्कर मानते हैं। उनके मत में ज्ञानाभाव में वे वाद-विवाद, वितण्डा, संघर्ष, अहंकार आदि के प्रपंच से बचे रहेंगे। इसलिए मुमुक्षु को अज्ञान ही श्रेयस्कर है। इन दोनों में से दूसरे प्रकार की भूमिका वाले अज्ञानवादी की तुलना भगवान महावीर के समकालीन मत प्रवर्तक संजयवेलट्ठिपुत्र नामक अज्ञानवादी से की जा सकती है जिसके अनुसार यदि आप पूछे कि क्या परलोक है? और यदि मै समयूँ कि परलोक है तो आपको बतलाऊँ कि परलोक है। मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता, मै दूसरी तरह से भी नहीं कहता। परलोक है भी और नहीं भी, परलोक न है और न नहीं है। निष्कर्ष यह कि तत्वविषयक अज्ञेयता अथवा अनिश्चितता ही अज्ञानवाद की आधार शिला है। स्पष्ट है कि अज्ञानवादी अस्तित्व और अनस्तित्व के सभी संभावित पहलुओं पर विचार करते थे एवं आति भौतिक या अत्यानुभविक किसी भी कथन के प्रकारों का उन्होंने खण्डन किया। अज्ञानवाद के इस खण्डन में स्याद्वाद के बीजों को खोजा जा सकता है (SECRED BOOK OF THE EAST-VOL.XLV. H.JACOBI PAGE XXVII) अज्ञेयवादियों का प्रभाव बौद्धों के निर्वाण सिद्धान्त पर भी परिलक्षित होता है जैसा कि पालि ग्रन्थों से स्पष्ट है। प्रोफेसर ओल्डेनवर्ग ने संयुक्त निकाय के राजा पसेणदि एवं खेमा के एक संवाद को आधार बनाते हुए इसकी व्याख्या की है जिसमें राजा मृत्यु के बाद तथागत (आत्मा) के अस्तित्व अनास्तित्व के सदंर्भ में लगभग उसी प्रकार का प्रश्न पूछता है जैसा कि सामजफलसूत्त में संजयवेलाटिपुत्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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