SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 94. : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा (सूत्र 34) में भी इसका निरुपण हुआ है। स्थानांग (1/9-10) का नवम सूत्र “एगे बन्धे' है और दशवां सूत्र "एगे मोक्खे'' है। समवायांग (1/1/13-14) में ये दोनों सूत्र इसी रुप में मिलते हैं। सूत्रकृतांग (2/5) और औपपातिक (सूत्र-34) में भी इसका वर्णन हुआ है। स्थानांग (1/13-14-15-16) का तेरहवां सूत्र “एगे आसवे" चौदहवां सूत्र "एगे संवरे", पंद्रहवां सूत्रः “एगा वेयणा' और सोलहवां सूत्र "एगा निर्जरा' है। यही पाठ समवायांग (1/15-1617-18) में मिलता है तथा सूत्रकृतांग (2/5) और औपपातिक (सूत्र 34) में भी इन विषयों का इसी रुप में निरुपण हुआ है। स्थानांगसूत्र के 55 वें सूत्र में आर्द्रा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र का वर्णन है। यही वर्णन समवायांग (सूत्र-23,24,25) और सूर्यप्रज्ञप्ति (पृ.10, पृ.9) में भी मिलता है। स्थानांगसूत्र के 328 वें सूत्र में अप्रतिष्ठान नरक, जम्बूद्वीप पालकयान विमान आदि का वर्णन है। उसकी तुलना समवायांग (सम 1, सूत्र 19,20,21,22) से की जा सकती है और साथ ही प्रज्ञापना (पद 2) और जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति (वक्षा सूत्र 3) से भी की जा सकती है। स्थानांग के 95 वें सूत्र में जीव-अजीव आवलिका का वर्णन है। यही वर्णन समवायांग (4/4/95), प्रज्ञापना (पद1, सूत्र1), जीवाभिगम (प्रति1 सूत्र1) और उत्तराध्ययन (36) में भी है। स्थानांग (2/4/110) में पूर्व भाद्रपद आदि के तारों का वर्णन है तो सूर्य प्रज्ञप्ति (प्रा.10, प्रा.9, सूत्र 42) और समवायांग (2/5) में भी यही वर्णन मिलता है। स्थानांग (3/1/126) में तीन गुप्तियों एवं तीन दण्डको का वर्णन मिलता है। समवायांग (3/1) प्रश्नव्याकरण (5वाँ संवर द्वार), उत्तराध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy