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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 93
मुनि श्री कन्हैयालाल जी "कमल" ने अपने स्थानांग सूत्र के परिशिष्ट में दिया है। युवाचार्य मधुकर मुनि जी द्वारा संपादित 'स्थानांग' की भूमिका में उपाचार्य देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री ने इन्हीं आधारों पर स्थानांग की विषयवस्तु अन्य आगमों में कहाँ मिलती है उसका उल्लेख अपनी भूमिका में किया है जो इस प्रकार है :
सन्दर्भ :* स्थानांग (10/2) में द्वितीय सूत्र है "एगे आया''। यही सूत्र
समवायांग(10/1) में भी शब्दशः मिलता है। भगवती (12/10) में
भी इसी का द्रव्य दृष्टि से निरुपण है। * स्थानांग (1/4) का चतुर्थ सूत्र "एगा किरिया' है। समवायांग (1/5)
में भी इसका शब्दशः उल्लेख है। भगवती (1/9) और प्रज्ञापना (पद 16) में भी क्रिया के संबंध में वर्णन है। स्थानांग (1/5) में पांचवां सूत्र है- "एगेलोए"। समवायांग (1/7) में भी इसी तरह का पाठ है। भगवती (12/7/7) और औपपातिक (सूत्र 56) में भी यही स्वर मुखरित हुआ है। स्थानांग (1/6) में सातवां सूत्र है- "एगे धम्मे"। समवायांग (1/9) में भी यह पाठ इसी रुप में मिलता है। सूत्र कृतांग (2/5) और भगवती (20/2) में भी इसका वर्णन है। स्थानांग (1/8) का आठवां सूत्र है "एगे अधम्मे'। समवायांग (1/10) में भी यह पाठ इसी रुप में मिलता है। सूत्रकृतांग (2/5)
और भगवती (20/2) में भी इस विषय को देखा जा सकता है। स्थानांग (1/11) का ग्यारहवां सूत्र है "एगे पुण्णे"। समवायांग (1/11) में भी इसी तरह का पाठ है। सूत्रकृतांग (2/5) और
औपपातिक (सूत्र 34) में भी यह विषय इसी रुप में मिलता है। स्थानांग (1/12) का बारहवां सूत्र है "एगे पावे"। समवायांग (1/12) में यह सूत्र इसी रुप में आया है। सूत्रकृतांग (2/5) और औपपातिक
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