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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 91 इस प्रकार स्थानांग में दस स्थान, अध्ययन अथवा प्रकरण हैं। जिस प्रकरण में निरुपणीय सामग्री अधिक है उसके चार उपविभाग भी किये गये हैं। द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ प्रकरण में ऐसे चार-चार उपविभाग हैं तथा पंचम प्रकरण में भी तीन उपविभाग हैं। इनके उपविभागों का पारिभाषिक नाम "उद्देशक" है। समवायांग की शैली भी इसी प्रकार की है, किन्तु उसमें दस से आगे की संख्या वाली वस्तुओं का भी निरुपण है। अतः उसकी प्रकरण संख्या स्थानांग की तरह निश्चित नहीं है, अथवा यों समझना चाहिए कि उसमें स्थानांग की तरह कोई प्रकरण व्यवस्था नहीं की गयी है। इसीलिये नंदीसूत्र में समवायांग का परिचय देते हुए कहा गया है कि इसमें एक ही अध्ययन है। ____ स्थानांग व समवायांग की कोश शैली बौद्ध परम्परा एवं वैदिक परम्परा के प्रथों में भी उपलब्ध होती है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, पुग्गलपति, महाव्युत्पत्ति एवं धर्म संग्रह में इसी प्रकार की शैली में विचारणाओं का संग्रह किया गया है। वैदिक परम्परा के ग्रन्थ महाभारत के वनपर्व (अध्याय 134) में भी इसी शैली में विचार संग्रहीत किये गये हैं। स्थानांग व समवायांग में संग्रह प्रधान कोश शैली होते हुए भी अनेक स्थानों पर या तो शैली खंडित हो गयी है या विभाग करने में पूरी सावधानी नहीं रखी गयी है। उदाहरण के लिये अनेक स्थानों पर व्यक्तियों के चरित्र आते हैं, पर्वतों का वर्णन आता है, महावीर और गौतम के संवाद आते हैं, ये सब खंडित शैली .. के सूचक हैं। स्थानांग के सूत्र 244 में लिखा है कि तृणवनस्पतिकाय चार प्रकार के हैं, सूत्र 431 में लिखा है कि तृणवनस्पतिकाय पांच प्रकार के हैं, सूत्र 484 में लिखा है कि तृणवनस्पतिकाय छः प्रकार के हैं। यह अंतिम सूत्र तृणवनस्पतिकाय के भेदों का पूर्ण निरुपण करता है, जबकि पहले के दोनों सूत्र इस विषय में अपूर्ण हैं। अंतिम सूत्र की विद्यमानता में ये दोनों सूत्र व्यर्थ हैं। यह विभाजन की असावधानी का उदाहरण है। ... विषय सम्बद्धता का प्रश्न :- संख्या के आधार पर विषयों का संकलन होने के कारण इस ग्रन्थ के अभिधेयों अथवा प्रतिपाद्य विषयों में परस्पर सम्बद्धता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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