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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 73
सोचना कि कोई भी अन्य व्यक्ति/परिजन विपरीत स्थितियों में व्यक्ति का सहायक हो सकता है, केवल भ्रम मात्र है न तो हम दूसरों को त्राण या शरण दे सकते हैं और न ही दूसरे हमें त्राण या शरण दे सकते हैं।
नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुम पि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा।
(72/8) 3. परिस्थितियाँ बहुत कठिन हैं। व्यक्ति दिन-ब-दिन दुर्बल होता जा
रहा है, उसे किसी श्री क्षण मृत्यु घेर सकती है। बहुत ही कलात्मक भाषा में कहा गया है- णत्थि कालस्स णागमो (82/66)- मृत्यु के लिए कोई भी क्षण अनवसर नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपने साधनों को जुटाता है और समझता है कि यह अर्थार्जन उसे सुरक्षा प्रदान कर सकेगा। वह धन एकत्रित करने के लिए स्वयं चोर और लुटेरा बन जाता है किन्तु एक समय ऐसा भी आता है कि चोर और लुटेरे ही उसका धन छीन ले जाते हैं और इस प्रकार सुख का अर्थी वस्तुतः दुःख को प्राप्त होता है (84/69)। संसार की इस निःसरता को
समझना ही क्षण' को पहचानना है। महावीर कहते हैं कि धैर्यवान पुरुषों को अवसर की समीक्षा करना चाहिए और मुहूर्तभर भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। अंतरं च खलु इमं संपेहाए-धीरे मुहुत्तमवि णो पमायए। (72/11) वस्तुतः जिस व्यक्ति ने क्षण को पहचान लिया है वह एक पल का भी विलम्ब किए बिना अपनी जन्म-मरण की स्थिति से मुक्ति के लिए प्रयास आरम्भ कर ही देगा। कौशल इसी में है इसीलिए महावीर कहते हैं:- कुशल को प्रमाद से क्या प्रयोजन। अलं कुसलस्स पमाएणं (88/95)। वे · निर्देश देते हैं कि उठो और प्रमाद न करो- उठ्ठिए णो पमायए। (182/23)
'प्रमाद' किसे कहते हैं? प्रमाद न करने का क्या अर्थ है? जो पराक्रम करता
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