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________________ परमात्मा बनने की कला भाष्य' में फरमाते हैं अरिहं ति वंदण-नमंसणाई, अरहं ति पूय सक्काइ। सिद्धिगमणं च अरहा, अरिहंता तेण वुच्चति ।। देवासुर-मणुयाणं अरिहा, पूया-सुसत्तमा जम्हा। अरिणो हंता रयं हंता, अरिहंता तेण वुच्चति ॥ | अर्थात्, जो वन्दन / नमस्कार के योग्य हैं, पूजा - सत्कार के पात्र हैं, सिद्ध गति को प्राप्त करने की क्षमता - योग्यता जिनमें है, तथा जिन्होंने कर्मरूपी रज ( मैल) को दूर किया है, उन्हें अरिहंत कहा जाता है। चार शरण अरिहंत शब्द के चार अक्षरों में अजब - गजब की ताकत है। एटम बम में विशेष प्रकार के अणुओं के मिलने से उसमें प्रचण्ड शक्ति इकट्ठी होती है । उसी तरह कुछ विशेष प्रकार के अक्षरों के संयोग से उन अक्षरों में जबरदस्त ताकत इकट्ठी हो जाती है। संयोग से ताकत बढ़ती है; विघटित होने से ताकत घटती है। संयोग में शक्ति की बात को इस प्रकार कहा गया है- 'संघे शक्ति कलियुगे'। कलयुग में संगठन में ही शक्ति है । ठीक वैसे ही, जैसे कि दो व्यापारी मिलकर व्यापार करते हैं तो व्यापार ज्यादा फैलता है; किन्तु सभी मूर्खों के मिलने से लिमिटेड कम्पनी नहीं चल सकती। उसको चलाने के लिए एक इंजिनियर, एक उद्योगपति चाहिए। सभी का सम्यक् समन्वय चाहिए। वैसे ही सम्यक् 1. अक्षरों के मिलने से सम्यक् शक्ति उत्पन्न होती है। अक्षरों के परस्पर संयोग से विशेष प्रभाव पड़ता है। इसलिए ज्ञानी भगवन्तों ने 68 अक्षरों का संयोग किया है, 'नमस्कार : महामन्त्र' के रूप में। इस मन्त्र में जितनी गहराई में हम उतरेंगे, जितनी ज्यादा सूक्ष्मता में जाएँगे, उतनी ही ज्यादा ताकत प्राप्त होगी। सूक्ष्म तरंगों से ही तो टी.वी. चैनल चलते हैं। यहाँ मूल बात यही कहनी है कि अरिहन्त आदि की शरण को हृदय में मुख्य स्थान देना है। ये ही प्रधान हैं, शेष सभी गौण हैं। हमें इन्हीं की शरण स्वीकार करनी है। : हमें अपनी चिन्ता का भार उनके सिर पर डाल देना है। इससे हमारी रक्षा करने की जिम्मेदारी उनकी हो जाती है। क्योंकि, शरण भी उसी का होता है, जो स्वयं सक्षम हो, जिसमें अनन्त शक्ति हो । अरिहन्त आदि चारों शरण शक्तिशाली हैं। उनकी शरण स्वीकार करने से 'चाहे जैसे कर्म क्यों न बांधे हों, वे सभी कर्म टूट जाते हैं। सभी पापों का क्षय हो जाता है, पुण्य का उपार्जन होता है। अरिहंत भगवन्तों की शरण हमें दुनियाँ के सभी सुखों को प्रदान कराने वाली है। सिद्ध भगवन्तों की शरण से अटके हुए कर्म नष्ट हो जाते हैं । साधु भगवन्तों की शरण से Jain Education International 89 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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