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________________ परमात्मा बनने की कला चार शरण सेठ बोला- 'राजन्! एक लाख का माल था।' राजा ने सेठं की नेक नीति पर प्रसन्न होकर उसी समय सेठ को एक लाख रुपये राजकोष से दिलवा दिये। सेठ ने घर जाकर बेटे से कहा- 'बेटा! देखो, यह है साख का प्रभावा साख से लाख वापस हो गये।' सुकरात ने लिखा है- 'अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्ति के लिए स्वयं को उतना योग्य बनाने का प्रयास करना, जितना तुम दूसरों की नजरों में दिखना चाहते हो।' इस संसार में किसका आधार है? न धन का है, न व्यक्ति का है। आधार तो उसी का लिया जाता है जो स्वयं मजबूत हो, नाशवान न हो। हमें विचार करना चाहिए कि करोड़ों, अरबों की सम्पत्ति क्यों न हो पर जब आयुष्य पूर्ण हो जाता है, तब वही सम्पत्ति हमारी रक्षक नहीं बनती है। इस संसार में अरिहंत आदि चारों शरण के बिना कोई रक्षक नहीं है। इनको जीवन में प्रत्येक कार्य खाते-पीते, सोते-उठते समय याद करना चाहिए। इनके बिना मैं अशरण हूँ। इनके अतिरिक्त अन्यों के साथ मेरा कोई व्यवहार नहीं है। अरिहंत परमात्मा के वचन ही मेरे लिए सर्वस्व हैं। . अरिहन्त, सिद्ध, साधु, केवली प्ररूपित धर्म; इन चारों की शरण को बारम्बार स्वीकार करना चाहिए। जो जीवन में इन चारों की शरण स्वीकार कर लेता है, उसके जीवन में आपत्तियाँ दूर से ही गायब हो जाएँगी। क्रूर व अन्य ग्रह हैरान, परेशान भी नहीं करेंगे, वहीं रुक जाएँगे। अपशकुन भी टलकर शकुन रूप में परिवर्तित हो जाएँगे। दूसरे भवों में दुर्गति में जाने से ये चारों शरण ही हमें रोक पायेंगे। इस भव में भी चारों के शरण ही हम सब की संसार के दुःखों से रक्षा करेंगे। हरिभद्रसूरीश्वर महाराज की रक्षा का प्रेरक प्रसंग हमारे सामने है आचार्य हरिभद्रसूरीश्वर जी महाराज के दो विद्वान शिष्य अध्ययन के लिए बौद्ध भिक्षु के पास गये थे। वहाँ बौद्धों को जैन संतों से द्वेष होने से उन दोनों विद्वान शिष्यों को मरवा दिया गया। इस घटना को सुनकर आचार्य श्री को सहन नहीं हुआ और वे भयंकर क्रोध में आ गये। विद्या के प्रभाव से 1400 बौद्ध साधुओं को कबूतर बनाकर अग्नि में रखे गरम तेल में डालकर मरवाने का विचार किया। सम्पूर्ण तैयारी हो गई। उनके गुरु (आचार्य श्री) ने जब जाना तो तुरन्त पत्र लिखकर उनके क्रोध को शान्त किया। . न्याय किसे कहना चाहिए? किसी व्यक्ति ने किसी से लाख रुपये लेकर उन्हें पुनः वापस देने से इनकार कर दिया, तो उस लाख रुपये के लिए लड़ना, कोर्ट में केस डालना, ये लौकिक न्याय कहलाएगा; किन्तु लोकोत्तर न्याय जैन शासन उसे कहता है Jain Education International 87 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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