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परमात्मा बनने की कला
की बात सुनते ही तुरन्त मुर्च्छित हो गये। अब सगर चक्रवर्ती के 60,000 पुत्रों को कौन जीवित कर सकता है, अर्थात् कोई भी नहीं। इसी अशरण स्थिति का विचार करना चाहिए। हमें इन दुःखों से कौन बचा सकता है, इसी बात पर चिंतन करना होगा।
जीव में इतना सत्व नहीं है कि सम्पूर्ण समर्पण के भाव रखे । संसार यदि पूरा नहीं छूटता हो तो बीच का चरण अर्थात् शरण को स्वीकार करो। सगर चक्रवर्ती के 60,000 पुत्रों में से एक भी पुत्र नहीं बच सका । अर्थात् कुल चलाने के लिए एक भी पुत्र नहीं रहा । जिस प्रकार सुलसा श्राविका के भी 32 पुत्र श्रेणिक महाराजा के एक ही बाण से मृत्यु को प्राप्त हो गए। संसार की असारता को बताते हुए कहा गया है कि यहाँ लाख भी एक दिन में राख हो सकते हैं और खाक भी एक दिन में लाख बन सकते हैं।
यहाँ एक दृष्टान्त विषयानुकूल प्रतीत होता है
एक सेठ था। वह रेशमी कपड़ों का व्यापार करता था । कारोबार में प्रमाणिकता और स्पष्टता के कारण उसकी बड़ी प्रसिद्धि थी। सेठ के प्रति सभी का अच्छा विश्वास था । उनकी लोकप्रियता भी खूब थी, क्योंकि सेठ का स्वभाव मिलनसार, हृदय सरल एवं निश्छल था।
चार शरण
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एक दिन राजा को कुछ रेशमी कपड़े की आवश्यकता होने से उन्होंने सेठ के घर बुलावे का संदेशा भेजा। अचानक राजा का संदेशा पाकर सेठ घबराते हुए महल में पहुँचा। राजा ने एकदम से ही सवाल किया- 'सेठ ! तुम्हारी दुकान में रेशमी कपड़ा है ? ' यह सुनते ही सेठ असमंजस में पड़ जाने से चकरा गया। उसे कुछ सुध-बुध ही नहीं रही, नहीं चाहते हुए भी सहसा उसके मुँह से निकल गया- 'राजन् ! मेरी दुकान में रेशमी कपड़ा नहीं है।' इतना कहकर सेठ जी लौट आए। सेठ जी के जाने के बाद कुछ लोगों ने राजा से कहा- 'नाथ ! सेठ बिलकुल झूठ बोलता है। हम अभी-अभी उसकी दुकान से आये हैं । उसकी दुकान में रेशमी कपड़ों का ढेर लगा हुआ है। '
राजा बोला- 'मैं जानता हूँ। सेठ बड़ा सत्यवादी है, नीतिज्ञ है और उस पर मुझे पूर्ण भरोसा है, वह कभी भी असत्य नहीं बोलेगा।'
लोगों ने कहा- 'राजन् ! हाथ कंगन को आरसी की कहाँ आवश्यकता है। आप हमारे साथ सेठ की दुकान पर पधारें। आपको स्वतः ही पता लग जाएगा कि हम झूठे हैं या सेठ ?' यह सुनकर राजा बोला- 'अच्छा, कल सुबह चलेंगे।'
सेठ ने घबराहट में अनायास ही निष्प्रयोजनार्थ जो असत्य भाषण कर दिया था, उस कारण वे बड़े दुःखी हो गए। उनके चेहरे पर गहरी उदासी छा गई। उनका मन अपनी
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