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परमात्मा बनने की कला
चार शरण पड़ता है। पुण्य इकट्ठा करने के लिए सच्चे हृदय से इनकी भक्ति करें। अरिहंत का शासन मन में बसा लो, 'व्यापार में अनीति नहीं करना चाहिए'; ऐसा विचार आना भी प्रतिपत्ति पूजा कहलाती है। यह आज्ञापालन रूप पूजा है। जगत् कीनश्वरता
इन्द्र ने भयभीत सेवकों को बचाकर कहा- 'चक्रवर्ती तुम्हें कुछ नहीं कहेगा। तुम सभी निर्भय होकर जाओ। मैं उन्हें जवाब दे दूंगा।'
सब पहुँचें, उससे पहले इन्द्र ब्राह्मण का रूप बनाकर वहाँ पहुँच गया और अपने कंधों पर मुर्दे को रखकर करूण क्रन्दन करने लगा। जोर-जोर से चिल्लाते हुए कहने लगा- 'मुझे मंगल अग्नि दो।'
सगर चक्रवर्ती ने उसकी आवाज सुनी और पूछा- 'ऐसा करूण क्रन्दन कौन कर रहा है? उसे यहाँ बुलाओ। उसके दुःख को दूर करो। ऐसी करूण आवाज सुनी नहीं जाती।' सैनिक ब्राह्मण को लेकर राजा के पास आया। ब्राह्मण राजा से कहता है- 'मेरा पुत्र मर गया है। कल संध्या के समय साँप ने उसे डस लिया था। शरीर हरा हो गया है।' सज्जन व्यक्ति का हृदय मक्खन जैसा मुलायम व कोमल होता है। दूसरों के दुःख को देखकर द्रवित बन जाता है। जगत् के जीवों के दुःख रूपी अग्नि से सगर चक्रवर्ती का हृदय रूपी मक्खन पिघल गया।
सगर चक्रवर्ती द्रवित हो उठा- 'अरे पगले! मरा हुआ व्यक्ति कभी जीवित हो सकता है क्या?' ब्राह्मण ने कहा- 'कल रात्रि में मुझसे प्रसन्न होकर कुलदेवी ने कहा- मैं तेरे पुत्र को बचा सकती हूँ। यदि तू मंगल अग्नि लेकर आ जाएगा। सम्पूर्ण नगरी में भ्रमण करने पर भी मुझे मंगल अग्नि नहीं मिली। मंगल अग्नि यानि जिस घर से एक भी व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त न हुआ हो, उस घर से अग्नि लेकर आना है।' सगर चक्रवर्ती बोले- 'अरे ब्राह्मण! तुम क्या कह रहे हो? मृत्यु तो मेरे परिवार में भी अनेक लोगों की हुई है। कुलदेवी ने आकर तुम्हें प्रतिबोध दिया है। जरा विचार करो। सम्पूर्ण विश्व हर क्षण बदलता रहता है। जहाँ जन्म है, वहाँ मृत्यु निश्चित है। हे भूदेव! मृत्यु तो एक दिन सभी की आएगी।'
उसी समय सभी सेवक विलाप करते हुए वहां आते हैं। सगर चक्रवर्ती सभी से रोने का कारण पूछते हैं- 'भाई! क्या बात है? तुम सभी क्यों रो रहे हो?' सभी ने कहा'आपके 60,000 पुत्रों को देवों ने अग्नि में भस्म कर दिया।' . - अभी-अभी जो सगर चक्रवर्ती ब्राह्मण को शिक्षा दे रहे थे, अपने पुत्रों के मृत्यु
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