SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमात्मा बनने की कला चार शरण ले जाने आएगा, तब शोक या खेद नहीं करना कि मंदिर निर्माण करने की मेरी भावना, साधर्मिक भक्ति करने की भावना मन में ही रह गई। प्रायश्चित करना, आलोचना लेना तो रह गया। सावधान! यहाँ कर्म राजा के आगे किसी जीव का कुछ भी नहीं चलता है। आयुष्य पूर्ण हुआ तो जाना ही पड़ेगा। ___ जीव का कोई शरण नहीं है। जो सोचा, वह कुछ भी होता नहीं है। फिर फूलकर गुब्बारा क्यों होते हो? पुण्य न रहा तो दबा हुआ धन भी कोयला बन जाता है। फिर किस बात पर अभिमान करना? किस प्रकार से बड़ा बन कर दिखाना है? सगर चक्रवर्ती के 60,000 पुत्रों के मन में अष्टापद तीर्थ की सुरक्षा करने का विचार आया। पर्वत के चारों दिशाओं में बड़े-बड़े खड्डे खोद दिये। गंगा नदी का पानी लाकर उसमें भरने लगे। पाताल लोक के देवता उन पर क्रोधित होकर बोले- 'रूक जाओ! इस तरह नदी का पानी बिना आज्ञा मत ले जाओ।' पर वे रूके नहीं। आवेश में आकर देवों ने क्रोधाग्नि से 60,000 पुत्रों को एक क्षण में जलाकर भस्मीभूत कर दिया। सभी पुत्र तीर्थरक्षा के भावों से मरे। अशुभ कार्य के लिए गए होते तो उनकी क्या गति होती? कोणिक राजा ने चेड़ा राजा से राज्य प्राप्ति हेतु युद्ध किया। एक करोड़ पचास लाख योद्धा युद्ध करते-करते मृत्यु को प्राप्त हुए। एक को छोड़ सभी मनुष्यों की दुर्गति हुई। एक की सद्गति का एक ही कारण, किसी व्यक्ति के द्वारा ग्रहण किए जा रहे चार शरण को स्वीकार करना व दुष्कृत गर्दा, इस विधि की देखादेखी करना। द्रव्य से की गई प्रतिपत्ति क्रिया भी कभी सद्गति यानि मनुष्य गति देती है। सद्गति प्राप्त करना दुर्लभ है। कषायों के वशीभूत होकर मृत्यु को प्राप्त करने वाले अन्य सभी तिर्यंच व नरक गति में उत्पन्न हुए। अरिहंत, सिद्ध, साधु व धर्म; इन चारों शरणों को पकड़ लो। एक बार इन्हें स्वीकार लो, फिर कभी मत छोड़ना। हर परिस्थिति में इनकी शरण आपको सद्गति दिलाने वाली होगी। पार्श्वनाथ भगवान् के जीव मरुभूति से भूल हुई तो अन्त समय में समाधि चली गई। आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान में मन चला गया। गति बिगड़ गई। कभी-कभी पुण्यशाली जीव सम्पूर्ण जीवन स्वस्थ रहते हैं, और अन्त में मृत्यु के समय भयंकर पीड़ा से ग्रस्त हो जाते हैं तो वह पीड़ा समाधि को नहीं टिका पाती है। उस समय चार शरण भी याद नहीं आते हैं। जबकि जीवन भर दूसरों की सेवा-सुश्रुषा में ही तन, मन समर्पित किया। जिसने दूसरों की सेवा द्वारा अनेक कष्टों को सहर्ष सहन किये हैं, वे सद्गति को प्राप्त करते हैं। बादाम खाते समय चिन्तन करो कि इससे दर्शन-ज्ञान-चारित्र की आराधना होगी 81 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy