SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमात्मा बनने की कला चार शरण कि नहीं? अगर नहीं तो वह बादाम निष्फल गई। एक मिष्ठान के टुकड़े को आराधना के लिए मुँह में डालते हैं, अथवा राग के पोषण के लिए? 'उपदेशमाला' ग्रन्थ में कहा गया है कि जिस वस्तु से रत्नत्रयी की आराधना में वृद्धि न होती हो, वे सभी वस्तुएँ लौकिक (दुनियावी) कहलाती हैं। हे श्रमण! इसमें तेरा अधिकार नहीं है। कहते हैं, दुनिया में सभी को नौकर से 'कैसे काम निकालना चाहिए', यह आता है परन्तु इस शरीर को मुफ्त में ही खिलाते रहते हैं। आखिर यह शरीर ही हमारी आत्मा का पतन करेगा। दुकान में सेठ ने नौकर को सम्पूर्ण कार्यभार सौंप दिया, लेकिन नौकर ऐसा निकला कि सेठ को ही दुकान से निकाल दिया और स्वयं दुकान पर कब्जा जमा लिया। साधु जीवन में दर्शन-ज्ञान-चारित्र की आराधना अनिवार्य रूप से करनी होती है। इसके अतिरिक्त की क्रिया उसको अपराधी साबित करती है। साधु जीवन के अधिकार की तरह श्रावक जीवन में भी दर्शन-ज्ञान-चारित्र की आराधना के साथ आजीविका की छूट होती है, अन्यथा नहीं होती। मैच, सिनेमा आदि देखने का अधिकार नहीं होता है। अत्यधिक परिग्रह रखने का अधिकार नहीं होता है। रत्नत्रयी की आराधना सुखमय हो, यहीं तक आजीविका की छूट होती है, अन्यथा नहीं। अरिहंतादि चारों शरण आपत्तियों से बचाते हैं। आपत्ति दो प्रकार की होती है1. बाह्य आपत्ति यानि शरीर, घर, चोरी, अपहरण, इनसे ये शरण रक्षा करते हैं। 2. आभ्यंतर आपत्ति - विषय-कषाय का उठना, संक्लेश, उद्वेग, इनसे भी ये शरण हमें बचाते हैं। मृत्यु के समय में ही नहीं बल्कि जीते जी ये चारों शरण हमारी रक्षा करेंगे। अरिहंतदेव, सिद्ध प्रभु, साधु व धर्म इन चारों को सच्चे दिल से हृदय में स्थापित करना चाहिए। वह भी तीन प्रकार से स्थापित करें। स्मरण से शरण, शरण से समर्पण। जैसेकभी-कभी भगवान को याद करना, यह स्मरण है। शरण में गौण व मुख्य दो प्रकार के भाव होते हैं। प्रत्येक प्राणी के जीवन में अरिहंत आदि चार प्रधान वस्तुएं हैं। ये निकट के सम्बन्धी हैं, रिश्तेदार हैं, जबकि संसारी दूर के सम्बन्धी हैं। जिनकी शरण स्वीकार हो, वे मुख्य रूप से हृदय में स्थापित होते हैं। घर की तिजोरी में रत्न भी होते हैं, सोने-चांदी के आभूषण भी होते हैं। घर में कपड़े, खाने-पीने की वस्तुएँ भी होती हैं। प्रत्येक वस्तु के प्रति भाव एक समान है अथवा अलग-अलग है? अलग-अलग ही होते हैं। रत्नों के मूल्य अधिक ही होंगे। रत्नों के स्थान पर अरिहंत आदि चार शरण होते हैं। ये निकट के सम्बन्धी कहलाते हैं एवं अन्य सभी वस्तुओं की तरह अन्यों Jain Education International 82 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy