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परमात्मा बनने की कला
चार शरण
पंचसूत्र चारशरण
खण्ड - तृतीय
जावज्जीवं मे भगवंतो-परम-तिलोग-नाहा,
अणुत्तर-पुण्ण-संभारा, खीण-राग-दोस-मोहा,अचिंत-चिंतामणी, भवजलहि-पोआ,एगंत-सरणा, अरिहंता-सरणं। तहा-पहीण-जर-मरणा, अवेअ-कम्म-कलंका,
पणट्ट-वा-बाहा, केवल-नाण-दंसणा, सिद्धिपुर-निवासी, निरुवम-सुह-संगया,
सव्वहा-कय-किच्चा, सिद्धा सरणं
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तहा-पसंत-गंभीरा-सया, सावज्ज-जोग-विरया, पंच-विहा-यार-जाणगा, परो-वयार-निरया, पउमाइ-नि-दसणा, झाणज्-झयण-संगया,
विसुज्झ-माण-भावा, साहू सरणं। तहा-सुरा-सुर-मणुअ-पूइओ, मोह-तिमिरं-सुमाली, राग-दोस-विस-परम-मंतो, हेऊ सयल-कल्ला-णाणं,
कम्म-वण-विहावसू, साहगो सिद्ध-भावस्स, केवलि-पण्णत्तो धम्मो जावज्जीवं मे भगवं सरणं।
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