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परमात्मा बनने की कला
अरिहंतोपदेश होगा। उसके पश्चात् तुम भी मेरी ही तरह तीर्थंकर बनकर सर्व जीवों का कल्याण करोगे। परन्तु मृत्योपरांत नरक के दुःखों को भोगना ही पड़ेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।'
जैन धर्म में मानव जन्म प्राप्त करने के पश्चात् इस असार संसार से छूटने का सच्चा पुरुषार्थ करना ही होगा। परन्तु इस संसार का उच्छेद किस प्रकार से होगा? इसके लिए शुद्ध धर्माराधना करनी होगी। धर्माराधना में जितनी गड़बड़ी यानि विराधना होगी, उतना ही हमारा परिणाम कम हो जाएगा। प्रत्येक क्रिया जितनी शुद्धता पूर्वक की जाएगी, उसका परिणाम उतना ही श्रेष्ठ प्राप्त होगा। अन्तिम उच्च कक्षा की परिपूर्ण धर्माराधना करने से ही अन्तिम मोक्ष फल की प्राप्ति होगी। शुद्ध धर्म के तीन लक्षण 1. बहुमान पूर्वक धर्म करना - प्रत्येक मानव का कर्तव्य है धर्म करना। किन्तु धर्म
कैसा? बहुमान पूर्वक किया गया धर्म श्रेष्ठ कहलाता है। इसलिए सम्पूर्ण आदर | बहुमान सहित धर्म करना चाहिए। मनुष्य जीवन में ऐसा दृढ़ संकल्प होना चाहिए कि धर्म के अतिरिक्त कुछ भी करने जैसा नहीं है। यदि कुछ करना भी पड़ता है तो लाचारी व कर्म की प्रबलता है। यहाँ एक मात्र भगवान् की भक्ति, गुरु की वैयावच्च और धर्माराधना, यही कर्तव्य है। ऐसी ही स्पष्ट बुद्धि की मान्यता हमारे भीतर चाहिए। 2. संज्ञा-निग्रह पूर्वक धर्म करना- सामान्यतः हम एक तरफ धर्म क्रिया करते हैं तो
दूसरी तरफ संज्ञाओं को खुला छोड़ देते हैं। इस प्रकार किया हुआ धर्म लाभदायक नहीं होता है। इन्द्रियों का निग्रह करने वाला ही धर्माराधना का सच्चा पात्र होता है। उपवास तप करके पारणे के दिन भोजन पर आसक्त बनना, निश्चित रूप से ऐसा तप-धर्म शुद्ध नहीं कहलाता है। प्रत्येक क्रिया में आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा और क्रोध, मान, माया, लोभ आदि ओध संज्ञा को घटाते जाना है। जब संज्ञाओं का लश्कर अपने ऊपर टूट पड़ता है तब, उसके सामने संघर्ष कर संज्ञाओं का निग्रह करना है। 3. फल की इच्छा से रहितधर्म करना- दान आदि प्रत्येक धर्माचरण करने से संज्ञाओं
के प्रति आसक्ति कम हुई या नहीं? संज्ञा पतली पड़ी अथवा नहीं? ब्रह्मचर्य पालन में मैथुन-संज्ञा को तोड़ना है। दान देकर परिग्रह-संज्ञा, तप द्वारा आहार-संज्ञा कम होनी चाहिए। इन्द्रिय विषयों के प्रति राग भाव घटते जाना चाहिए। बिना फल की इच्छा वाला धर्म होना चाहिए।
कहा गया है कि दान देने से देवलोक का सुख मिलेगा। तपश्चर्या करने से
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