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परमात्मा बनने की कला
अरिहंतोपदेश
जाएगा। पुरुषार्थ नहीं करेंगे तो अनादि संसार में भटकते ही रहना पड़ेगा। सच्चा व अच्छा पुरुषार्थ करेंगे तो ही संसार से पार हो पायेंगे। भयंकर संसार
शास्त्रों में अनेक स्थानों पर संसार की असारता का वर्णन मिलता है, जहाँ प्रत्येक जीव को भयंकर दुःख भोगना पड़ता है। सुअर आदि तिर्यंच प्राणियों को पकड़कर कत्लखाने में ले जाया जाता है, उस समय उनको उल्टा लटकाकर उनके गुदे में गरम सलाखें डालकर जीभ के भाग से बाहर निकाला जाता है। तत्पश्चात् उनको गोल-गोल घुमाकर उनके नीचे अग्नि जलाते हैं। जीवित प्राणी को जलाते हैं और सेकते हैं! देवनार कत्लखाने में जीवित पशुओं की चमड़ी उतार दी जाती है। गरमागरम उबलते पानी में पशुओं को डालकर उनके शरीर से चमड़ी निकालते हैं। आज भी सम्पूर्ण विश्व में प्रतिदिन करोड़ों-अरबों की संख्या में मछलियों को काटा जाता है। इससे भयंकर पाप महापाप होता है। जाने अथवा अनजाने में व्यक्ति वध, हिंसा करके पाप कर्मों को बांध लेता है और बधे हुए कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ता है। यथा
____ परमात्मा महावीर के सम्पर्क में आने से पूर्व श्रेणिक राजा शैव धर्म को मानने वाले थे। उन्हें शिकार खेलने का अत्यधिक शौक था। एक दिन शिकार खेलते समय उन्होंने एक हिरणी पर बाण चलाया, जो गर्भवती थी। एक साथ अपने एक निशाने से दो जीवों का वध देखकर सम्राट श्रेणिक बहुत खुश हुए और वहीं परिणाम स्वरूप आयुष्य कर्म का बंध हो गया। बहुत समय बाद सम्राट श्रेणिक परमात्मा महावीर के सम्पर्क में आए। एक दिन भगवान से राजा ने पूछा, 'भगवन्! मैं इस भव के पश्चात् मरकर कहाँ जाऊँगा?' ।
भगवान् ने कहा- 'श्रेणिक! तुम यहाँ से मृत्यु प्राप्त कर नरक में उत्पन्न होने वाले हो।'
तुरन्त राजा ने कहा- 'भगवन्त आप का भक्त, प्रतिदिन आपका स्मरण करने वाला, मेरे हृदय में, मेरे खून, मांस, हड्डी में मात्र आप बसे हो। आप के सिवाय राज्य के प्रति अथवा अन्तःपुर की रानियों के प्रति भी राग नहीं है। फिर भला कैसे मैं नरक में जाऊँगा?'
भगवान् ने फरमाया- 'राजन्! अभी तुम्हारे हृदय में मेरे प्रति अटूट श्रद्धा भक्ति हैं, तुम्हारे हृदय में मेरा निवास है, सही है, परन्तु मेरे सम्पर्क में आने से पहले हिरणी का शिकार करते समय उसका वध किया, तब तुम्हें अत्यन्त हर्ष एवं खुशी हुई थी। बस वहीं नरक का आयुष्य कर्म बन्ध हो गया। राजन्! किये हुए पाप कर्मों को समभाव से भोगना ही
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