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परमात्मा बनने की कला
अरिहंतोपदेश
अधिक शक्ति का प्रयोग करेंगे, उतना स्वाभाविक रूप से कार्य होता चला जाएगा। इस प्रकार प्रयत्न से जीव ज्यादा से ज्यादा आगे बढ़ता जायेगा, और वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपशम होगा। हमें श्रेष्ठ जिन शासन की प्राप्ति हुई है। उसमें भी ज्ञानी-ध्यानी, तपस्वी, गीतार्थ गुरु मिले हैं। अब मात्र पुरुषार्थ कर अपने कर्मों को शिथिल कर नष्ट करना है।
वर्तमान में हम देख रहे हैं कि जगह-जगह देश-विदेश में क्रिकेट मैच खेले जा रहे हैं। इसका क्या फल मिलने वाला है? मैच आखिर क्या है? एक प्रकार का कौतुक है ना? कौन जीता, कौन हारा, यही देखना अच्छा लगता है। भीतर इच्छाएँ जगती हैं। यही इच्छा आगे हमारे जीवन में कैसे रूपान्तरित होती है। द्रष्टव्य है
___ एक मार्ग में दो मुर्गों को लड़वाया जा रहा है। इस कौतुक को देखने बहुत लोग खड़े हैं, दोनों मुर्गे लहुलुहान हो गये हैं। आप वहाँ से जा रहे हैं। आपके मन में इच्छा जगेगी कि कौन हारा और कौन जीता? और आप भी देखने के लिए वहाँ मार्ग पर खड़े हो जायेंगे। फिर कभी मल्ल कुश्ती, तो कभी दो देश के बीच युद्ध आदि कौतुक देखने की इच्छा जागृत होती है। अरब में अरबी ऊँट की पूंछ से छोटे बालक को बांधकर ऊँट को दौड़ाया जाता है। जब बालक को पूंछ से घसीटने पर मिट्टी के थपेड़े, पत्थर की चोट लगती हैं; और वह बालक जोर-जोर से चिल्लाता है, तब उस आवाज को सुनकर अरेबियन लोगों को आनन्द आता है, खुशी मनाते हैं। यह भी कौतुक देखने की रुचि है। ऐसे ही कौतूहल प्रिय परमाधामी देव, जो असुर निकाय के देवता कहलाते हैं, उनको नरक के जीवों से कोई दुश्मनी नहीं होती है। परन्तु इन देवों को भी कौतुक करने व देखने की अत्यधिक रुचि होती है। ये देव कौतूहल प्रिय होते हैं। इन्हीं संस्कारों से नरक में आते हैं
और जीवों को दुःख देते हैं; और जब वे जीव जोर-जोर से चिल्लाते, रोते, गिड़गिड़ाते हैं तो उन्हें बड़ा मजा आता है, आनन्द आता है। इसी तरह क्रिकेट मैच आदि खेल देखने से ऐसे अनेक कौतुक देखने के बीजों का वपन होता है। ... परमाधामी जीव नियम से भव्य जीव ही होते हैं। हम भी भव्य जीव हैं। क्योंकि इस जीव ने भी परमाधामी के अनन्त भव किये हैं। नारकीय जीवों को भयंकर दुःख दिये। फिर वहाँ से मृत्यु प्राप्त कर तीसरे भव में नारकी का ही भव प्राप्त होता है। जीव वहाँ भयंकर दुःख को भोगता है। इस प्रकार कई भवों तक यह चक्र चलता रहता है। उस समय वहाँ हमें कौन बचाने आता है? परन्तु काल का परिपाक होता है, कर्मों का कुछ क्षयउपशम, क्षयोपशम होता है, तब सुन्दर मानव जन्म की प्राप्ति होती है। अब यदि भूल कर दी और जिन शासन का ख्याल न रखकर उसे छोड़ दिया तो भव भ्रमण फिर से आरंभ हो
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