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परमात्मा बनने की कला
अरिहंतोपदेश
__गोशाला छः दिन तक तड़फता रहा और अंतिम दिन उसने खूब पश्चाताप किया, जिससे मरकर देवलोक में उत्पन्न हुआ। कषाय से युक्त चिकने कर्मों को उसने पहले ही बाँध लिया था। जब कर्म उदय में आये तो हर भव में उसे जलना पड़ा, बार-बार जलाया गया। देवलोक से गोशाला का जीव च्यवकर मनुष्य लोक में आकर राजा बनेगा। वहाँ पर भी जब वह साधुजनों को परेशान करेगा, तब ज्यादा परेशान होकर साधुजन राजा को तेजोलेश्या से जला डालेंगे। इसी प्रकार आने वाले भवों में भी अनेक कष्टों को सहन करते हुए वह जीवन बिताएगा और अन्त में जल कर ही मरना पड़ेगा।
एक, दो भवों की पीड़ा से, वेदना से कर्म छूटने वाले नहीं हैं। तीव्र कर्म बांधा है तो भवों तक परम्परा चलेगी ही। जब तक भगवान् साक्षात नहीं मिलेंगे, तब तक दुःख भोगना ही पड़ेगा। केवल नरकों में ही नहीं, बल्कि प्रत्येक नरकावास में जाकर हम आये हैं। कत्लखाने में पशु को काटते व मारते देखते हैं तो हमारे शरीर में कंपकंपी होने लगती है। इसी प्रकार असंख्य बार अपने को भी काटा गया है। परमात्मा का, गुरु भगवन्तों का हम पर कितना असीम उपकार है कि इस भव में धर्म का मार्ग दिखाकर फिर से गिरते हुए बचा लिया। पशुओं के जीवन की कल्पना तो करो। जन्म मिला बैल का, फिर उसका पालनपोषण हुआ। थोड़ा शरीर हृष्ट-पुष्ट हुआ कि किसान की मजदूरी करनी चालू हुई। भयंकर सर्दी-गर्मी में भी खेत में हल खींचना पड़ा। जब शरीर का पूरा रस निकल जाता है, तब अंत में कत्लखाने ले जाया जाता है। कटते समय भयंकर पीड़ा में आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान आ गया तो सीधे नरक ही जाना पड़ेगा। हर भवों में मार पड़ती है फिर भी धर्म करने का मन नहीं करता है। पाप प्रवृत्ति ही चलती रहती है। इतना अधिक रांग-द्वेष होता है कि पाप वृत्ति से छूट ही नहीं पाते हैं। जब पुण्य प्रबल नहीं हो तो अनार्य देश में जन्म लेना पड़ता है। वहाँ भी मनुष्य जन्म मिलेगा पर फलदायक नहीं होगा, क्योंकि भव जल तारने वाले सच्चे देव-गुरु-धर्म का वहाँ अभाव है।
जब सच्चा धर्म नहीं मिलेगा तो मानव धर्म के नाम पर अधर्म ही करेगा और दुर्गति में ही जाएगा। अनार्य देशों में मानव में मानवता का, दया धर्म का अभाव होता है। जीवित मानव को जला देना, पेट्रोल डालकर आग लगा देना, ऐसी अमानवता वहाँ नजर आती है। आर्य देश में ऐसे भी मानव के दर्शन होते हैं जिन्हें सच्चे देव-गुरु-धर्म नहीं मिलते हैं, फिर भी उनमें सज्जनता नजर आती है। न्याय नीति से प्रमाणिक जीवन जीने वाले होते हैं। लगता है थोड़े से पुण्य की कमी के कारण वे जैन धर्म से वंचित रह गये।
पूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री बहुत ही सज्जन व्यक्ति कहलाते थे।
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