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________________ परमात्मा बनने की कला अरिहंतोपदेश ग्रह, नक्षत्र, तारे, पृथ्वी भी तो अनादि काल से हैं। इसी तरह संसार भी अनादि अनन्त काल तक चलता रहे? समझें, तकलीफ हमें इस बात की है कि संसार दुःखरूप है, दुःख देने वाला है, दुःख की परम्परा को बढ़ाने वाला है। वर्तमान में संसार दुःखरूप है जो आधि, व्याधि, उपाधि, रोग, जन्म, जरावस्था, मरण, दरिद्रता, संक्लेश, पैसा, कुटुम्ब, अपयश, अपमान आदि दुःखों की चिन्ताओं से भरा हुआ है। यहाँ किसी भी जीव को कहीं भी शांति नहीं है, चैन नहीं है। श्रीमन्तों को चैन की नींद नहीं। गोली खाकर नींद लेनी पड़ती है। करोड़ों, अरबों रूपये के मालिक हैं पर मन में शान्ति नहीं है। प्रतिदिन संसार में अट्ठारहपापस्थानक का पाप करते हैं और दुःखों को बढ़ाते जाते हैं। वस्तुतः संसार की प्रवृत्ति ही दुःख उत्पन्न करने वाली है। पाप प्रवृत्ति के द्वारा जब तीव्र रसयुक्त कर्मों को जीव बांधता है तो इसी भव में फल भोगने पड़ते हैं, ऐसा भी होता है। अन्याय, अनीति करके, लोगों को लूटकर धन इकट्ठा किया हो तो अन्तिम अवस्था में कैंसर अथवा लकवा जैसी बड़ी बीमारी शरीर में आ जाती है। बाहर से बड़े-बड़े महारथी दिखाई देने वाले भी भीतर से वैचेन होते हैं। अनेक चिन्ताएँ उनके सिर पर होती हैं। इसलिए संसार में कोई भी सुखी नहीं है, ऐसा कहते हैं। वर्तमान तो दुःख में बीत रहा है पर परिणाम भी दुःख रूप ही होता है। दुःख की परम्परा वाला होता है। दुःख की परम्परा एक या दो भव तक ही साथ चलकर फिर छूट जाने वाली भी नहीं है, बल्कि भवों भव तक साथ चलती है। गोशाले काजीवन . . परमात्मा महावीर आदि 24 तीर्थंकर केवलज्ञान के पश्चात् ही चतुर्विध संघ की स्थापना करते हैं। फिर सर्वप्रथम गणधर, साधु आदि उनके शिष्य बनते हैं। इससे पहले छमस्थ अवस्था में मौन साधना करते हैं। परन्तु परमात्मा को केवलज्ञान प्रकट होने के पहले ही गोशाला उनका शिष्य बनकर उनके साथ विचरण करने लगा था। जब परमात्मा मौन ही रहते थे तो उनका लाभ गोशाला उठा लेता था। झूठ-कपट के सहारे लोगों में परमात्मा को नीचा दिखाता और खुद को ऊँचा और बड़ा ज्ञानी बताता था। काफी समय के बाद गोशाला ने परमात्मा से तेजोलेश्या चलानी सीखी और अन्त में क्रोधावेश में आकर उसी तेजोलेश्या का प्रयोग परमात्मा के ऊपर किया। परन्तु वही तेजोलेश्या की अग्नि परमात्मा को तीन प्रदक्षिणा लगाकर गोशाले के शरीर में प्रवेश कर गई। गोशाले ने प्रभु से कहा- छः महीने पश्चात् तेरी मृत्यु हो जाएगी। तब परमात्मा ने फरमाया - हे गोशाला! मेरी मृत्यु को अभी कुछ वर्ष बाकी हैं, किन्तु सात दिन पश्चात् तेरी मृत्यु हो जाएगी। Jain Education International 55 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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