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________________ परमात्मा बनने की कला अरिहंतोपदेश भवों की यात्रा शुरू करते हुए कई बार वापस निगोद में जाता है और अनन्त काल तक वहाँ भयंकर दुःखों को भोगता है। 2. नियति - अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में लाने का कार्य ही नियति कहलाता है। अनन्त जीवों में जिस किसी भी जीव की नियति जागृत होगी, वही भाग्यशाली जीव अव्यवहार राशि से बाहर निकल पाता है। 3. काल- नियति ने जीव को अव्यवहार राशि से बाहर आने का सौभाग्य प्राप्त कराया किन्तु फिर भी व्यवहार-राशि में आते ही संसार में भटकने का कार्य शुरू हो जाता है। भवयात्रा में जीव अनन्त पुद्गलपरावर्तन काल (एक पुद्गलपरावर्तन यानि अनन्त कालचक्र) तक भटकता है। अनन्तकाल से अनन्त भवों में जीव सभी स्थानों में जाकर आ जाता है। एक पुद्गलपरावर्तन काल भी बहुत लम्बा समय है, तो इस जीव ने अनन्त पुद्गल परावर्तन काल कहाँ व्यतीत किये? कहते हैं लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर प्रत्येक जीव का अनन्त बार जन्म-मरण हुआ है, तभी अनन्तानन्त काल सम्पूर्ण हो सकते हैं। अभव्य जीव की दशा तो विचार कर देखो? उन जीवों को तो कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं होगा। साधना के द्वारा स्वर्ग प्राप्त कर लेंगे, पर सम्पूर्ण कर्मों को क्षय कर मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते। उनका संसार भ्रमण चलता ही रहेगा। विचार करो! यदि हम अभव्य होते तो? क्योंकि अनन्त प्रयत्न करने पर भी अभव्य को भव्य नहीं बनाया जा सकता है। नियति को नमन करो कि उसने हमें भव्य बनाया है। अचरमावर्त काल में सभी जीव अभव्य की तरह ही होते हैं। धर्म कार्य करना अच्छा ही नहीं लगता है। जीव पाप कार्य रूचिपूर्वक करता है और दुर्गति में भटकता रहता है। कभी किसी के कहने से या किसी को देखकर थोड़ा-थोड़ा धर्म क्रिया किया भी तो स्वर्ग में उत्पन्न हुआ और वहाँ से भी अप्काय या पृथ्वीकाय में गिरा। चरमावर्तकाल में आने से पहले तीर्थंकर के जीवों को भी चारों गति में भटकते रहना पड़ता है। जीव का काल परिपूर्ण (परिपक्व) होने पर ही मंजिल प्राप्त होती है। उसके पहले जीव का प्रयास साथ नहीं देता है। अचरमावर्त काल से चरमावर्त काल में लाने का कार्य काल का है। 4. कर्म - चरमावर्त काल में आ जाने के पश्चात् भी जीव को धर्म सरलता से नहीं प्राप्त होता है। उसमें भी शुभ पुण्यकर्म का उदय हो तो अरिहंत परमात्मा के दर्शन होते हैं। अन्यथा अन्य देव के दर्शन कर धर्म के स्थान पर अधर्म करके पापों का बन्ध कर लेते हैं। पुण्योदय से सुदेव, सुगुरु, सुधर्म एवं अच्छे कुल में जन्म मिलता है। चरमावर्त काल में पुण्य से अनुकूल धर्म साधन सामग्री मिली भी परन्तु प्रमाद के कारण उसका 45 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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