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परमात्मा बनने की कला
अरिहंतोपदेश
भयंकर दुःखों से मुक्ति का मात्र एक ही उपाय है इसके अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय या रास्ता नहीं है। शास्त्रों में परमात्मा ने फरमाया है कि जब एक जीव मोक्ष यानि सिद्ध पंद प्राप्त करता है, तब एक जीव सूक्ष्म निगोद यानि अव्यवहार राशि (निगोद) से व्यवहार राशि में आता है। इसमें भी अनन्त जीवों में से किस जीव का नम्बर लगेगा, उन जीवों को यह पता भी नहीं चलता है। परमात्मा फरमाते हैं कि अनन्त जीवों में से जिस जीव की नियति, भवितव्यता जागृत हो गई हो, वही जीव अव्यवहार राशि से निकलकर व्यवहार राशि में आता है। इसके अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है। कम से कम एक समय में एक जीव और ज्यादा से ज्यादा 108 जीव एक साथ में मोक्ष जा सकते हैं। मोक्ष जाने का जीवों का अन्तर काल ज्यादा से ज्यादा छः महीने का है। क्योंकि एक जीव कम से कम छः माह के भीतर मोक्ष गमन करेगा, और एक जीव सूक्ष्म निगोद से बाहर आयेगा। यदि संख्यात जीव मोक्ष गमन करेंगे तो संख्यात जीव अव्यवहार राशि से बाहर आएँगे। व्यवहार राशि में आना अर्थात् भवों की यात्रा शुरू हो जाना। नील (काई), फूलण आदि जो जीव हमें दिखाई देते हैं, उस बादर निगोद में भी अनन्तानन्त जीव एक साथ होते हैं। उस बादर निगोद में भी हमारा जीव अनन्त काल व्यतीत करता है। अनन्त काल जन्म मृत्यु को धारण करने के पश्चात् पृथ्वीकाय में जन्म लेता है। पृथ्वीकाय भी दो प्रकार के होते हैं- सूक्ष्म पृथ्वीकाय एवं बादर पृथ्वीकाय। इसके पश्चात् सूक्ष्म अप्काय, बादर अप्काय, सूक्ष्म तेजस्काय, बादर तेजस्काय, सूक्ष्म वायुकाय, बादर वायुकाया इस प्रकार क्रमबद्ध जीव आगे ही बढ़ेगा यह निश्चित नहीं है। इन भवों के बीच वह पुनः बादर निगोद में भी जा सकता है, अनन्त काल के पश्चात् क्रम से या बिना क्रम से तिर्यंच, विकलेन्द्रिय, नरक आदि सभी भवों को प्राप्त करता है। वह सभी स्थानों पर जन्म-मृत्यु धारण कर भयंकर दुःखों को प्राप्त करता है। दुःखों को सहन करना ही साधना है। उसी अनन्त काल तक की साधना के पश्चात् बड़ी कठिनाई से एवं प्रबल पुण्योदय से जीव को मनुष्य भव की प्राप्ति होती है। बड़ी मुश्किल से दुर्लभ मानव भव प्राप्त हो जाने के पश्चात् इसकी सार्थकता आत्म साधना द्वारा मोक्ष प्राप्त करने से है। समवाय की समझ
_ परमात्मा ने पाँच समवाय बताये हैं- स्वभाव, नियति, काल, कर्म एवं पुरुषार्थ 1. स्वभाव - जीव स्वभाव से दो प्रकार के होते हैं। भव्यत्व और अभव्यत्वा भव्य जीव
सम्यक्त्व प्राप्त कर मोक्ष जा सकता है। किन्तु अभव्य जीव कभी सम्यक्त्व प्राप्त नहीं कर सकता है. और मोक्ष भी नहीं जा सकता है। अव्यवहार राशि से बाहर आकर
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