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________________ परमात्मा बनने की कला अरिहंतोपदेश प्राप्त करता रहा। एक अंगुल के असंख्यातवें भाग जितने प्रमाण की एक काया में अनन्त जीवों के साथ रहा और ऐसे असंख्यात शरीर इकट्ठे होते हैं और अनन्तानन्त जीव एक साथ मिलते हैं, तब ये बादर निगोद कहलाते हैं। इन्हें हम अपने चर्म चक्षु से देख सकते हैं किन्तु सूक्ष्म निगोद तो हमें दिखाई भी नहीं देते हैं। चौदह राजलोक ऐसे सूक्ष्म निगोद से सम्पूर्ण ठसाठस भरा हुआ है। लोक के प्रत्येक प्रदेश में अनन्त-अनन्त जीव प्रत्येक समय जन्म-मृत्यु को धारण करते रहते हैं। ये जीव इतने सूक्ष्म होते हैं कि हम इनका न किसी शस्त्र से छेदन-भेदन कर सकते हैं, न इनको पानी में बहा सकते हैं, न आग में जला सकते हैं, न इन्हें कोई कष्ट पहुँचा सकते हैं। मानव शरीर से हम इन सूक्ष्म जीवों का कुछ बिगाड़ नहीं सकते, पर मन के द्वारा इनकी विराधना करने से पाप कर्म का बन्धन अवश्य होता है। एक निगोद में अनन्त जीव किस प्रकार रह सकते हैं? इस प्रश्न को स्पष्ट करने के लिए शास्त्रों में इसे एक उदाहरण से समझाया गया है। जैसे एक वैद्यराज एक लाख औषधियाँ लेकर आता है और उन सभी औषधियों को बारीक पीसकर मिला देता है। फिर उन औषधियों को राई के दाने जितनी एकदम छोटी-छोटी गोली बना देता है। फिर कोई उनसे प्रश्न करें कि इस एक गोली में कितनी औषधि है? तो वैद्यराज जी यही कहेगें कि इस एक गोली में एक लाख औषधियां मिलाई गई हैं। वैसे ही एक शरीर में अनन्त जीव एक साथ समा जाते हैं। परमात्मा की वाणी शंका रहित है। परम सत्य होने से शंका नहीं करनी चाहिए। हमारा जीव अनादिकाल से सूक्ष्म निगोद में यानि अव्यवहार राशि में ही रहा। अनन्त काल हमारा अव्यवहार राशि में ही व्यतीत हुआ। निगोद में जीव का आयुष्य अन्तर्मुहूर्त काल जितना रहता है। अन्तर्मुहूर्त यानि 48 मिनट से कुछ समय न्यून। प्रत्येक जीवों का आयुष्य जरूरी नहीं कि दो घड़ी ही होगा। क्योंकि उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त एवं जघन्य से एक सेकन्ड का 22वाँ भाग है। यानि एक सेकण्ड में 22 बार जन्म मरण करना है। अन्तर्मुहूर्त यानि आयुष्य कितने भी सेकन्ड या मिनट का हो सकता है, पर दो घड़ी (48 मिनट) से ज्यादा नहीं होगा। सूक्ष्म निगोद में अनन्त जीवों के बीच एक शरीर प्राप्त होता है। उसी एक शरीर में सभी जीवों को एक साथ श्वासोच्छवास लेना होता है, एक साथ आहार ग्रहण करना पड़ता है। उन जीवों के न तो आँखें हैं, न नाक है, न कान, न जीभ की प्राप्ति है। मात्र एक इन्द्रिय है, वह है स्पर्शेन्द्रिया यानि मात्र उनको एक काया मिली है। उसी शरीर से आहार, श्वासोच्छवास आदि ग्रहण करना होता है। एकदम अल्प चेतना होती है। ऐसी दारूण परिस्थिति में हम सभी ने अपना अनन्त काल बिताया है। ___ अव्यवहार राशि के भयंकर दुःखों से छुटकारा प्राप्त करने का कोई उपाय है? 43 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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