SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमात्मा बनने की कला ग्रन्थ परिचय अनन्त उपकारी चरम तीर्थपति परमात्मा महावीर स्वामी का शासन आज भी महान् पुरुषों, महान् ग्रन्थों एवं महान् तीर्थों से गौरवान्वित है। इन त्रिस्तम्भों से ही रत्नत्रय साधना की सही पूंजी मिलती है। इस साधना के लिए पंचसूत्र ग्रन्थ का विस्तृत अध्ययन करना आवश्यक है। श्री पंचसूत्र एक भव्य एवं आत्म-कल्याणार्थी शास्त्र है। इस शास्त्र के रचियता का नाम एवं इतिहास कहीं नहीं मिलता है, परन्तु शास्त्र की भाषा आदि भाववाही रचनाशीलता को देखकर लगता है कि तत्त्वार्थसत्र से भी पहले इसकी रचना की गयी होगी, ऐसी कल्पना है। अज्ञात रचियता होने से इस सूत्र को चिरन्तनाचार्य द्वारा रचित कहा जाता है। . इस सूत्र पर टीका रचने वाले याकिनी महत्तरा सुनु को कौन नहीं पहचानता? चित्तौड़ राजा के समर्थ विद्वान पुरोहित-ब्राह्मण से जैन साधु-दीक्षा प्राप्त कर जैन शासन के महाप्रभावक जैन आचार्य पद तक पहुँचने वाले, 1444 शास्त्रों के प्रणेता, भगवन्त श्री हरिभद्रसूरीश्वर जी महाराज ने इस पंचसूत्र पर विवेचन लिखा है। यही इस ग्रन्थ की महान् उपयोगिता और गंभीरता को सूचित करता है। टीकाकार के अनुसार इस ग्रन्थ का नाम 'पंचसूत्रक' एवं उपाध्याय यशोविजय जी महाराज की 'धर्मपरीक्षा' में 'पंचसूत्री' नाम मिलता है। वर्तमान में इस ग्रन्थ का पंचसूत्र' नाम ही प्रचलित है। · पंचसूत्र ग्रन्थ में शास्त्रकार ने नवनिधान आदि आध्यात्मिक तत्त्व रत्नों को भर दिया है। हमें पंचसूत्र के गहन अध्ययन, चिन्तन, मनन द्वारा तत्त्वनिधान को प्राप्त करना है। पंचसूत्र का विस्तार से विवेचन करने से पूर्व यह आवश्यक है कि हम पंचसूत्र का संक्षिप्त परिचय जान लें। पंचसूत्र का संक्षिप्त विवेचन पंचसूत्र के पाँच प्रकरणों में ये 5 मुख्य विषय हैं1. पापप्रतिघात और गुणबीजाधान 2. साधुधर्म-परिभावना, 3. प्रव्रज्या ग्रहणविधि 4. प्रव्रज्या पालन और 5. प्रव्रज्याफल-मोक्ष, 21 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy