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परमात्मा बनने की कला
मुख्य पाँच अधिकारों को लेकर पाँच सूत्रों का समूह होने से इसे 'पंचसूत्र' कहा गया है। इन पाँच अधिकारों का विवेचन इस प्रकार है1. पापप्रतिघात और गुणवीजाधान
___ पाँचवें सूत्र में प्रव्रज्या फल यानि दीक्षा का फल, मोक्ष का वर्णन किया गया है। उसी मोक्ष दशा को प्रकट करने के लिए सर्वप्रथम कारण स्वरूप पहले सूत्र में पापप्रतिघात और गुणबीजाधान करने की प्रक्रिया जरूरी है। पापप्रतिघात में 'पाप' अर्थात् अशुभ अनुबन्ध का आगमन 'प्रतिघात' यानि विच्छेद करना है। जब अनुबन्ध नष्ट हो जायेगा तो आत्मा से पाप का अधिकार ही उठ जाएगा तथा आत्मा पर गुणों का अधिकार स्थापित हो जाएगा। गुणबीज यानि गुणों का बीज, गुण - जैसे हिंसात्याग आदि गुण जो हैं, उनके बीज, 'आधान' : स्थापन करना, रोपण करना; जिससे राग, द्वेष आदि संक्लेश रुक जाएं और गुण की परम्परा चले। इसका नाम है गुण-बीजाधान। इनके श्रेष्ठ आधार भूत चतुःशरण स्वीकार आदि उपाय प्रथम सूत्र में बताये गये हैं। ये उपाय इतने सटीक हैं कि इनसे पाप प्रतिघात और गुणबीजस्थापन होने से आगे के सूत्रों का पदार्थ आत्मा में सरलता से स्थापित होता है। 2. साधुधर्म की परिभावना
साधु धर्म अर्थात् पंच-महाव्रत और कषायोपशम रूप क्षमादि १० प्रकार के चारित्र धर्म, उनकी परिभावना अर्थात् पूर्वभूमिका तैयार करने के लिए तीव्र उत्कण्ठा से युक्त अणुव्रतों का अभ्यास। हृदय से चिंतन, उत्कण्ठा अर्थात् आत्मा के चरित्र के वीर्योल्लास को जागृत करना है। इसलिए दूसरे सूत्र में श्रावक के पाँच अणुव्रतों के अतिरिक्त दूसरी अन्य बहुत सी अद्भुत और अतिआवश्यक साधनाएँ बताई गई हैं। 3. प्रव्रज्या ग्रहण विधि
मुमुक्षु यानि दीक्षार्थी को संसार त्याग किस प्रकार करना, उसके अनेक विधानों का वर्णन इस तीसरे सूत्र में गम्भीर व सुन्दर रीति से किया गया है। 4. प्रव्रज्या परिपालन
इसमें साधु धर्म के चारित्रगुण द्वारा आत्मा ज्यादा से ज्यादा भावित बने; जैसे, चन्दन में सुगन्ध की तरह आत्मा में एक गुण एक रस कैसे बने, उसके लिए अनेक उपायों का वर्णन किया गया है। उन उपायों के साथ चारित्र धर्म की चर्या का पालन कैसे करना है, इसका वर्णन किया गया है।
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