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________________ परमात्मा बनने की कला है, इनको विवेचित करने का प्रयास किया गया है। जिनशासन की प्राप्ति करने के पश्चात् उसकी सेवा करनी चाहिए, श्री संघ पर वात्सल्य पैदा करना चाहिए इसी में आत्म- कमाई है, इनका विवेचन भी ग्रंथ में दर्शाया गया है । अन्त में दुष्कृत की गर्हा कैसे करें, समाधि क्यों दुर्लभ है, इत्यादि दर्शाकर मृत्यु के दो रूप व प्रकारों का उल्लेख कर उनका विवेचन किया गया है। पंचम यानि अंतिम खण्ड में पाप - प्रतिघात - गुणबीजाधान का तीसरा उपाय सुकृत अनुमोदन का उल्लेख किया गया है। प्रारम्भ में अरिहन्त व सिद्ध भगवंतों की, फिर पंचममहाव्रतधारी आचार्य, उपाध्याय, साधु भगवंतों की सुकृत अनुमोदना का वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् श्रावक-श्राविकाओं के द्वारा किये गये सुकृत दान, व्रत, नियम, तप, साधना, ज्ञान, दर्शन, चारित्र की अनुमोदना प्रस्तुत की गई है। अनुमोदना के दो कारणों को दर्शाकर धर्म के चार प्रकार दान, शील, तप, भाव पर यथोचित दृष्टान्त प्रस्तुत करते हुए भाव धर्म की अनुमोदना को दर्शाया गया है । प्रणिधान शुद्धि, उन्नत्तिकारण साधना के अंग, उन्नति के विशिष्ट साधन और उनके कारणों को प्रस्तुत किया गया है। अंत में प्रार्थना करते हुए सूत्र की महिमा का वर्णन कर सूत्र- स्वाध्याय का परिणाम प्रस्तुत करके अंतिम मंगल कर ग्रंथ का समापन किया गया है। पाठकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए हमने प्रत्येक खण्ड के प्रारम्भ में मूल सूत्र को भी प्रस्तुत किया है; क्योंकि मूल सूत्र के साथ-साथ उसके विवेचन का आनन्द कई गुणा वृद्धिकर होता है। Jain Education International 20 For Personal & Private Use Only सुलोचन चरण रज - प्रियरंजना श्री www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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