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________________ परमात्मा बनने की कला कौन? अरिहन्त प्रभु ने क्या-क्या यथार्थ प्रकाशित किया, इत्यादि मानव भव का मूल्याकंन इस खण्ड में किया गया है। दूसरे खण्ड में विषय को प्रारम्भ करते हुए कहा गया है कि जीव, संसार, कर्म संयोग सभी अनादि हैं। दुःखरूप, दुःखफलक, दुःखानुबन्धी संसार का उच्छेद शुद्ध धर्म से ही हो सकता है। अतः संसार का भंयकर स्वरूप दर्शाया गया है। फिर अनादिकाल की संसार यात्रा, समवाय की समझ, उत्कृष्ट भाव जगाएँ, पुरूषार्थ ही कर्त्तव्य है। इनका उल्लेख किया गया है। साथ ही शुद्ध धर्म के तीन लक्षण व शुद्ध धर्म साधने की विधि प्रस्तुत की गई है। तथाभव्यत्व का स्वरूप व उनके परिपाक के तीन उपाय दर्शाए गये हैं। तत्पश्चात् प्रणिधान के तीन लक्षण प्रस्तुत कर प्रणिधान के पांच चरणों का वर्णन किया गया है। तीसरे खण्ड में चतुःशरण स्वीकार कैसे करें? शरण स्वीकार के बाद सुलसा महाश्राविका व अम्बड परिव्राजक की कथा विस्तार से प्रस्तुत की गई। शरण हमें तारने वाले हैं। नवकार मंत्र की शरण से अमरकुमार का अग्निकुण्ड भी स्वर्ण-सिंहासन बन गया, तत्पश्चात् अरिहन्त परमात्मा की शरण स्वीकार करने हेतु विशिष्ट विशेषणों का वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इन्हें परम त्रिलोकनाथ, अनुपम पुण्य समूह आदि विविध विशेषणों से दर्शाया गया है। दूसरी शरण सिद्ध भगवंतों की है। इसमें जन्म-जरा-मरण मुक्त आदि विशेषणों के साथ अईमुत्ता मुनि का दृष्टान्त प्रस्तुत किया गया है। तीसरी शरण साधु भगवंतों की है। प्रशांत-गंभीर आशय वाले, परोपकार गठन, पद्म उपमा वाले विशेषणों से सुशोभित करते हुए साधु भगवन्त की महिमा पर प्रदेशी राजा का दृष्टान्त उल्लेखनीय है। प्रार्थना सूत्र का भी वर्णन किया गया। अन्त में केवली प्ररूपित धर्म की शरण का त्रिलोकपूजित, मोहांधकार नाशक, रागद्वेष विष मंत्र आदि विशेषणों को दर्शा कर कुमारपाल राजा, खंधक मुनि के उदाहरण वर्णित किये गये हैं। 'चतुर्थ खण्ड में दुष्कृत की गर्दा, उसके कारण प्रस्तुत कर, प्रभु से कैसे प्रार्थना करें, इसे समझाया गया है। दुष्कृत गर्दा से समकित की प्राप्ति और कब होगा कर्मों का अन्त, अन्य की साक्षी से आत्मनिन्दा इत्यादि का विवेचन किया गया है। शल्योद्धार से हो आत्मोद्धार, छोटा सा शल्य महाकष्टदायक (अश्व दृष्टान्त), गोशाला व रूक्मिणी साध्वी के चारित्र से भी रूबरू कराया गया है। शुद्ध-श्रद्धा-भक्ति ही मुक्ति का कारण है, अतः श्रद्धा भक्ति को और मजबूत बनाने का वर्णन किया गया है। छोटी-सी भूल की बड़ी सजा, प्रायश्चित् से आत्मशुद्धि, अर्थ-काम में डूबा जीव जीवन में अनके बार गलती कर बैठता 19 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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