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परमात्मा बनने की कला
कारण जीव दुःख ही पाता है।
हमें अपने हृदय में यह बात स्थिर कर लेनी चाहिए कि संसार की हर एक प्रवृत्ति पाप ही है, और पाप का फल दुःख है। वस्तुतः संसार दुःख - फलक ही है।
'संसार की कोई भी प्रवृत्ति करके मैं उनके दुःखों को ही आमंत्रण दे रहा हूँ।' यह विचार हमारे मन-मस्तिष्क में दृढ़ कर लेना चाहिए। जीव ऐसी प्रवृत्ति राग-द्वेष, मोह एवं अज्ञानता आदि दोषों की वजह से ही करता है, ऐसे दोषों से युक्त जीव ही पाप प्रवृत्ति में जुड़ता है। राग-द्वेषादि दोषों की रुक्षता के कारण संसार की कोई भी पाप प्रवृत्ति सिर्फ एक बार ही दुःख नहीं देती है बल्कि वह तो दुःखों की एक परम्परा खड़ी कर देती है ।
इस प्रकार विचार करने पर हमें यह अनुभव होना चाहिए कि संसार स्वरूप से दुःखरूप है, पापों के कारण दुःखफलक है और रागद्वेषादि दोषों के कारण दुःखानुबंधी है। इस प्रकार संसार की दुःखमय स्थिति का विचार किया जाये, तो वैराग्य भाव पैदा होते देर नहीं लगेगी | ऐसा ज्ञानी फरमाते हैं।
पंचसूत्र सम्बन्धी वक्तव्य
द्रव्यानुयोग चरणकरणानुयोग इत्यादि अनुयोग पर समर्थ आचार्य प्रवरों ने अनुपम शास्त्र सृजन किया है, उनमें 'तत्त्वार्थाधिगम' महाशास्त्र अतिगंभीर रूप से प्रख्यात है, इसी प्रकार यह 'पंचसूत्र' भी इनकी तुलना में अद्वितीय ग्रंथरत्न है, जो कलिकाल में चिन्तामणि रत्न के समान है। वस्तु समर्थ याकिनी महत्तरा सूनु सूरिपुरंदर श्रीमद् हरिभद्राचार्यजी की वृत्ति कहती है 'प्रवचनसार एष सज्ज्ञान क्रिया योगात्', अर्थात् समग्र आर्हत शास्त्रों का सार यह पंचसूत्र है, क्योंकि इसमें सम्यक् ज्ञान क्रिया आदि का खजाना भरा हुआ है।
श्री वीतराग सर्वज्ञ, जिनेश्वर प्रभु के शासन में प्रवेश करने के लिए इस 'पंचसूत्र' का प्रकाश मुमुक्षु के लिए अति आवश्यक है। जो सच्चा सुख मोक्ष में है, उसी सुख की नींव से शिखर तक की मार्ग-साधना ही पंचसूत्र का परमार्थ है । जिस मोह को क्षय करके ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, उस मोह को ही क्षय करने का सहज / सरल मार्ग अति निपुण भाव से, भरपूर विशदता से इस ग्रंथ में वर्णित किया गया है। जीवों की तथाभव्यता भिन्न-भिन्न होती है । इसलिए तुच्छ बुद्धिवाले जीवों को सुख की इच्छा से अर्थ और काम पुरूषार्थ में तीव्र रुझान होता है । परमात्मा ने कहा है कि संसार के दुख किंपाक फल जैसे दुःखमयी, पराधीन, निराधार होने पर भी जीवों को इष्ट होते हैं, किन्तु उत्तम मुमुक्षु आत्माओं को सच्चा और शाश्वत् सुख अधिक प्रिय होने से वे धर्म और मोक्ष
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