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परमात्मा बनने की कला
दुष्कृत गर्दा दुष्कृत गर्दा से तीव्र से तीव्र रस वाले कर्म अल्परस वाले बन जाते हैं, पुराने पाप कर्मों के अनुबन्ध टूट जाते हैं। आज तक हम सभी ने प्रणिधान, एकाग्रता और दुनिया के स्वार्थ के भाव से पाप कर्म किए। ऐसे पाप कर्म के द्वारा आत्मा में तीव-रस और अनुबन्य वाले कर्मों का बन्ध हुआ। अतः इन दोनों प्रकार के कर्म बन्ध को तोड़ने की शक्ति इस दुष्कृत गर्दा में है। जैसे हिंसा का पाप हमने बहुत किया। चूल्हे में लकड़ी जलाते समय आँख में पानी आया? शेयर बाजार में रुपये जब कागज बन गये, तब रागी को रात में नींद हराम हो गई। पुत्र बीमार पड़ा, उसको देखकर आँखों में आँसू आए, किन्तु पाप कर्म करते समय क्या रोना आया? हमने हँसते-हँसते कर्म बाँधे थे। उस समय विचार नहीं आया कि इन कर्मों का उदय आएगा तो कैसे इनको भोगेंगें।
__ प्रणिधान पूर्वक किए गये पापों को कैसे भोगेंगे, यह चिन्तनीय प्रश्न है? कैसे करें दुष्कृत-गा?
ये पाप करने जैसे नहीं हैं, फिर भी मैंने किये हैं। अरे! इतनी हिंसा की मैंने? परिग्रह का अमाप संग्रह किया? जो नहीं करना था, फिर भी करता ही रहा और जो करना था, उसे नहीं किया। जैसे मुझे आठ वर्ष की उम्र में दीक्षा लेकर आत्म-कल्याण करना था, वह मैंने नहीं किया। परमात्मा ने कहा- यह दुर्लभ मानव जीवन सम्पत्ति एकत्रित करके परिवार चलाने के लिए नहीं है। तो ये मैंने किया। यह जीवन आत्मा साधना-आराधना हेतु . चारित्र ग्रहण करने के लिए है, तो वह मैंने नहीं किया।
___ संसार में रहकर पाप करते हैं, फिर भी उनसे अपना बचाव करते हैं। संसार यानि पापों में रहना। पापकर्म करना। ऐसा बचाव नहीं चाहिए। अकर्त्तव्यत्व (अकत्ता) की बुद्धि को प्रधानता देनी होगी। मैं कुदरत का, कर्मसत्ता का गुनाहगार हूँ। कुदरत ने मुझे पाँच इन्द्रिय, जैनधर्म, देव-गुरु सब कुछ दिया। क्या मैं इनका सही रूप से उपयोग कर पाया? देव, गुरु के वचनों के विपरीत जो कुछ किया, वे सब दुष्कृत ही हैं। अतः इन पापों की मुक्त कण्ठ से निन्दा करनी है। एक-एक दुष्कृत को याद करते हुए आँखों से आँसू निकलने चाहिए। दुर्लभसमाधिहै
लब्धिसूरि म. परमात्म स्तवन में लिखते हैं- 'हूँ पापी छु नीच गति गामी' दिन भर में कितनी बार याद आता है? हम थोड़ी आराधना करते हैं, और स्वयं को आराधक आत्मा मानने लग जाते हैं। दो-चार भव पश्चात् हमें मोक्ष हो जाएगा। जब अच्छे काल में भी समाधि दुर्लभ होती है तो दुष्काल में, व्याधि में, मृत्यु के समय समाधि क्या रह
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