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________________ परमात्मा बनने की कला दुष्कृत गर्दा भगवान् को नहीं छोड़ सकता हूँ। उनकी आज्ञा मेरे लिए प्राण है। वे सात्विक थे। मैं जलकर मर जाऊँगा पर लोक में जैन धर्म की निन्दा तो नहीं होगी।' राजा कुमारपाल प्रत्येक कार्य गुरु आज्ञा से करते थे। जिनशासन को प्राप्त करने के बाद गुरु का हाथ मस्तक पर नहीं हो तो उनका जीवन शुरू नहीं हुआ। गुरुदेव ने जल मंत्रित करके उन्हें पीने को दिया। राजा द्वारा मंत्रित जल का सेवन करते ही कुष्ठ रोग दूर हो गया। मंत्र की शक्ति द्वारा देवी को पकड़कर क्षमा मंगवाई गई। यहाँ कुमारपाल राजा का सत्व देखने जैसा है। सत्व होना बहुत महत्वपूर्ण बात है। यशोदेवसूरि जी म.सा. ने 36 वर्ष की उम्र में दीक्षा ली। श्रीमंत परिवार से आए थे। दीक्षा के पहले उन्हें गुरु ने एक ही वाक्य कहा- 'कब तक संसार के कीचड़ में पड़े रहोंगे?' यशोदेवसूरि जी म.सा. का सत्व देखिये। बातें तो होती रहती हैं परन्तु उन्होंने नियम लिया कि चातुर्मास के पहले मेरी दीक्षा नहीं हुई तो मेरे प्रतिदिन उपवास का अभिग्रह है। ...और चातुर्मास के पहले उनकी दीक्षा हो गई। 'उपमितिभव प्रपंचकथा' में सत्वगुण की अत्यधिक प्रंशसा की गई है। . सत्वशाली के ग्रह सदा अनुकुल हो जाते हैं, क्योंकि सत्व गुण सबसे श्रेष्ठ गुण है। कुमारपाल राजा सत्वशाली कहे जाते थे। संकल्प किया था प्रतिदिन छः ऋतुओं के पुष्पों द्वारा परमात्मा की पूजा करूँगा अन्यथा आहार पानी ग्रहण नहीं करूँगा। सत्वशाली पुरूषों को देवता भी सहायता करते हैं। दूसरे ही दिन छः ऋतुओं के पुष्प उद्यान में उत्पन्न हो गये। प्रत्येक कार्य में सत्व चाहिए। सत्व के बिना काम नहीं हो सकता है। छोटीभूल,बड़ी सजा . श्रेणिक महाराजा के द्वारा हुई हिंसा की भूल से नरक के आयुष्य का बध हुआ। दो या पाँच मिनट के अशुभ भाव, किन्तु उन पापों को भोगने का समय 84,00,000 वर्ष तक, नरक का भयंकर दुःख, पीड़ा। नरक में कम से कम जघन्य कार्य का फल 10,000 वर्ष का आयुष्य है। किन्तु बांधने का यदि काल अन्तर्मुहूर्त का भी हो तो भोगने का काल असंख्य काल तक भी नहीं छूट पाता है। इसलिए हर समय सावधानी रखनी चाहिए। पाँच मिनट की भी छोटी सी भूल बड़ी तकलीफ, कष्टदायक, पीड़ाकारी बन सकती है। इसलिए परमात्मा महावीर ने अपनी देशना के माध्यम से सूत्र में कहा है- 'समयं गोयम मा पमायये।' हे गौतम! एक क्षण (समय) का भी प्रमाद मत कर। प्रमाद यानि कि राग, द्वेष। Jain Education International 157 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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