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________________ परमात्मा बनने की कला दुष्कृत गर्दा गुरु साक्षी में आत्म शुद्धि- सर्वप्रथम गर्दा करते समय ऐसे भाव होने चाहिए कि मैं मात्र इसी भंव के नहीं बल्कि असंख्य भवों के दुष्कृत्यों के भार को लेकर भटक रहा हूँ। इस प्रकार गुरु के समक्ष अपने उन पापों के भार को स्मरण में रखकर गर्दा करेंगे तो आत्मा निर्मल बनेगी व भार हलका होगा। आज का समय बड़ा विकट है। समाचार पत्रों में हम देखते है प्रथम पृष्ठ पर...। मृत्यु की खबरें अधिक छपी होंगी। मध्यम पृष्ठ के मध्य में मृत्यु की खबरें कुछ कम देखने को मिलेंगी। मृत्यु बहुत सस्ती हो गई है। आयुष्य की मर्यादा घट गई है। आप अपनी गाड़ी एकदम व्यवस्थित चला रहे हैं, परन्तु सामने से आने वाला भूल कर दे और आप की गाड़ी को टक्कर मार दे तो आप क्या कर सकते हैं? क्योंकि आयुष्य का कोई भरोसा नहीं है। इसलिए प्रत्येक जीव को बिना किसी शर्म से आत्म शुद्धि कर लेनी चाहिए। किसी के भी समक्ष नहीं कहने जैसी बात गुरु के समक्ष कह देनी चाहिए। गुरु गंभीर हो। घोर पाप सुनकर चेहरे की एक रेखा भी न बदले। जिनशासन में कितनी सुंदर व्यवस्था है कि अनेक भवों में जो पाप नहीं धो सके, वे पाप यहाँ धो सकते हैं। पूर्व भवों के पापों को हम जानते तक नहीं हैं, फिर भी उनकी व्यवहार से निंदा करते हैं और प्रायश्चित लेते हैं। वर्तमान में पापों की निन्दा करते-करते भूतकाल के पापों का भी प्रायश्चित साथ में हो जाता है। ऐसी व्यवस्था मात्र जिनशासन में है। अन्य धर्मों में ऐसी व्यवस्था शायद ही सुनने को मिलेगी। वहाँ तो अपघात की बातें सुनने को मिलती हैं। अपधान करने से कर्म नहीं मरते हैं, उनके सस्कार और मजबूत बन जाते हैं। दुःखपूर्वक मरने से दूसरे भव में पुनः दुःख आने पर मरने के ही विचार आएँगे; और कितने ही भवों तक यह परम्परा चलती रहेगी। पंचेन्द्रिय की हत्या का पाप नरक में ले जाता है। यह कार्य कायरों का है। सच्चे पराक्रमी व्यक्ति दुःख को समता से सहन कर कर्म का क्षय करते हैं। यहाँ यही समझना है कि यदि समाधिमरण अथवा परलोक में सद्गति चाहते हैं तो आत्मशुद्धि करना होगा। बड़े-बड़े तपस्वी, संयमी आत्मा ने भी छोटा-सा शल्य हृदय में रख लिये तो उनका भी अन्त बिगड़ा। समाधि नष्ट हो गई। जबकि दूसरी तरफ सरलभाव से शुद्धि करने वाले समाधि को प्राप्त कर लेते हैं। यही आत्म शुद्धि की शक्ति है। श्रद्धा- इस भव में प्राप्त हुए सुदेव-सुगुरु-सुधर्म पर अत्यन्त श्रद्धा उत्पन्न करनी होगी। मैं जो कुछ भी दिखाई दे रहा हूँ, वह सब कुछ परमात्मा की असीम कृपा से प्राप्त है। मेरे अरिहंत देव की तुलना में दूसरे अन्य कोई देव नहीं हो सकते। ये मेरे भगवान के प्रमाण Jain Education International For Person 155rivate Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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