SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमात्मा बनने की कला दुष्कृत गर्दा हूँ। मैं गोशाला हूँ। भगवान् महावीर का शिष्य हूँ। निमित्त शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर मैंने अपने आप को सर्वज्ञ घोषित किया है। मैं सबसे बड़ा गुनाहगार हूँ। मेरी मृत्यु के बाद शरीर को रस्सी से बांधकर राज मार्ग की ओर लेकर जाना। सारे नगर में उद्घोषणा करवाना कि गोशाला सर्वज्ञ नहीं था। इसने अपने गुरु को ठगा है। मेरे मृत देह पर थूकना, पत्थर मारना और अंत में अग्नि संस्कार करना। . आत्मनिंदा करते-करते गोशाला सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेता है। अंतिम समय में ही आयुष्य कर्म का बन्ध हुआ। इतना पाप किया फिर भी 12 देवलोक में गया। आत्मनिंदा, दुष्कृत की निंदा का यह सुन्दर अनुष्ठान है। गोशाला ने आत्मनिंदा तो की परंतु दुष्कृत गर्दा गुरु समक्ष नहीं कर पाया। यदि गर्दा गुरु के पास कर लेता तो. पाप को मूल से निकाल देता। देव, गुरु की आशातना की जड़ें बहुत गहरी चली जाती हैं। वहीं देव, गुरु के पास गर्दा कर लें तो जड़ें उखड़ जाती हैं। निंदा से घास निकली, पर गर्दा नहीं करने से बीज रह गया। बन्थ टूटा पर अनुबन्ध रह गया 'बन्ध और अनुबन्ध' क्या? कर्म बांधने के पश्चात् अच्छे भाव आते हैं तो बथ टूट जाता है; किन्तु उस कर्म की परम्परा मिटाने के लिए गुरु की शरण में जाकर गर्दा करना अनिवार्य होता है। अपने पापों को प्रकट करना। इससे शल्य निकल जाते हैं। अनुबंध टूट जाते हैं। गोशाला ने भगवान की निंदा क्यों की? कहा जाता है कि उसके जीव ने पूर्व भव । से गुरु निंदा के शल्य को वहन कर रखा था। वही अनुबन्ध रूप कर्म अनेक गुणाकार होकर परमात्मा की निन्दा करने के रूप में उदित हुआ। अतः हर जीव को अति सावधान होना है। साधु-साध्वी भगवन्त भी पूर्ण ज्ञानी नहीं होते हैं। अतः गलती हो जाती है। उनकी गलतियों की निंदा नहीं करनी चाहिए। हो सके तो मधुर वाणी से समझायें, अन्यथा छोड़ दें; पर द्वेष या आशातना करने से गोशाला से भी ज्यादा भयंकर परिस्थिति हमारे साथ घट सकती है। इसलिए हर समय जागृत रहना है। पापों की निन्दा व गर्दा कैसी हो? कहा जाता है, जो पाप जितने भावों से किए, उससे ज्यादा भावों से उसकी निंदा / गर्दा करें। बांधते समय ज्यादा भाव, नोड़ते समय भाव कम हों तो कर्म तोड़ने में महत्व नहीं रखता। शुद्ध श्रद्धा भक्तिमुक्ति यहाँ दुष्कृत गर्दा के द्वारा जीवन को उन्नत बनाने के लिए तीन बातें ध्यान में रखकर आचरण में लाना जरूरी है। ये तीन बातें जिनके जीवन में उतर जाएं, उनकी भव्यता परिपाक हो जाती है। 154 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy