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________________ अपनी बात अकबर प्रतिबोधक युगप्रधान चतुर्थ दादा गुरूदेव श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब के चतुर्थ स्वर्गारोहण शताब्दी वर्ष (1620-2070) के पावन प्रसंग पर प्रकाशित यह ग्रंथ हमारे लिए परम पुण्योदय का प्रतीक है। सबके आस्था केन्द्र गुरूदेव के चरणों में मेरी अनन्त वंदना, उन्हीं के चरणों में यह ग्रंथ सादर सादर समर्पित। इस ग्रंथ के लेखन प्रकाशन में जिनकी पुनित प्रेरणा रही है, वे है मम जीवन उपकारी, मेरी हृदय की आस्था की केन्द्र गुरूवर्या द्वय प.पू. श्री सुलोचनाश्रीजी म.सा. एवं प.पू. सुलक्षणाश्रीजी म.सा.। आपके पावन चरण-कमलों में मेरी विन्रम वन्दना अर्ज करती हूँ।आपश्री के अन्नत उपकारों की ऋणी हूँ मैं। ___ बात उस समय कि है जब मैने प्रथम बार 'पंचसूत्र' का अध्ययन किया था। मन में उसी दिन एक बात जागृत हुई कि इस सूत्र का विस्तृत विवेचन करना है। विस्तृत विवेचन हेतु खोज करने पर मुझे सर्वप्रथम "पंचसूत्रनु परिशीलन' नामक पुस्तक प्राप्त हुई। मन प्रसन्न हुआ पर उतना नहीं, जितना होना था। क्योंकि पुस्तक गुजराती में थी। पुस्तक का अध्ययन करने पर मन कहने लगा कि काश! यह पुस्तक हिन्दी भाषा में होती, तो आसानी से सभी हिन्दी पाठकवृंद इस ग्रंथ के अध्ययन का लाभ ले सकते थे। वैसे भी अनेक जैन ग्रंथ हिन्दी में अनुपलब्ध है। अतः मन में विचार आया कि क्यों न इस ग्रंथ का हिन्दी में अनुवाद किया जाए। फिर ई.सन् 2012 वड़ोदरा चातुर्मास में इसका लेखन कार्य पू. गुरूवर्याश्री की प्रेरणा से प्रारम्भ कर दिया गया और इस बीच दूसरी पुस्तक "उच्च प्रकाश ना पंथे" प्राप्त हुई। दोनों पुस्तकें मेरे ग्रंथ लेखन में अति सहयोगी बनी। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य पुस्तकों का सहारा लेकर ग्रंथ को सहज, सरल एवं परिपूर्ण बनाने का प्रयास किया गया है, जिससे सुधि पाठकगण सरलता से इसका ज्ञान प्राप्त कर जीवन में परिर्वतन ला सके। - वडोदरा चातुर्मास के पश्चात् हमारा अहमदाबाद की ओर विहार हुआ। वहाँ बाड़मेर चातुर्मास की विनती चल रही थी। लेखन कार्य थोड़ा मंद सा हो गया। परन्तु जब बाड़मेर पहुँचाना हुआ तो वहाँ शिक्षाविद् डॉ. बंशीधर तातेड़ से मिलना हुआ। उनकी सानिध्यता पाकर इस कार्य को प्रगति दी गई। ई. सन् 2013 बाड़मेर चातुर्मास में इस कार्य को सम्पन्न करने का दृढ़ संकल्प किया गया। प्रथम तीर्थकर आदेश्वर दादा की छत्र छाया में व देव-गुरू की असीम कृपा से यह कार्य सम्पन्न हुआ। इस लेखन कार्य में श्रीमान् तातेड़ सा. का सम्यक, निर्देशन नहीं मिलता तो शायद ही यह कार्य इस वर्ष 13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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