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परमात्मा बनने की कला
चार शरण है। इस प्रकार विचार कर राजा ने नौकर को बुला कर आज्ञा दी- जाओ! उस साधु को वधभूमि पर ले जाओ और मारकर उसकी खाल उतार लाओ।
__राजा की कठोर आज्ञा सुनकर चांडाल कांप उठा। वह मन ही पन विचार करने लगा कि आज मुझे कितना जघन्य काम सौंपा गया है। यदि मैं राजा की आज्ञा भंग करूँगा तो मुझे प्राण-दण्ड दिया जाएगा। इस प्रकार विचार कर खंधक मुनि के पास आया और उन्हें पकड़ने लगा। मुनि ने पूछा- मुझे किस कारण पकड़ा जा रहा है? चांडाल बोलाराजा की आज्ञा अनुसार श्मशान भूमि में तुम्हारा वध किया जाएगा और तुम्हारे शरीर की खाल उतारी जाएगी।
यह हृदयविदारक वचन सुनकर मुनि को आघात पहुँचना स्वाभाविक था। परन्तु खंधक मुनि को शरीर और आत्मा का भेद-विज्ञान ज्ञात था। अतएव वे विचारने लगे- यह शरीर नश्वर है। किसी न किसी दिन जीर्ण-शीर्ण हो जाएगा। ऐसी स्थिति में अगर आज ही यह नष्ट होता है तो इसमें मुझे दुःख करने की क्या आवश्यकता है? मेरी आत्मा तो अजर-अमर है। उसे कोई कष्ट नहीं पहुँचा सकता है। ऐसा विचार कर और धैर्य धारण कर. वे चुपचाप चांडाल के पीछे चलने लगे। जब दोनों वध स्थल पर पहुँचे, तब मुनिवर ने कहा- भाई! मेरे शरीर में रक्त नहीं है, इस कारण चमड़ी हड्डी के साथ चिपक गई है। अतः खाल उधेड़ने के लिए कोई साधन साथ लाये हो या नहीं? अन्यथा तुम्हें बहुत कष्ट
होगा।
चांडाल मन में विचार करने लगा- मैं कितना पापी हूँ? आप महात्मा हैं। आपके हृदय में मुझ जैसे पापात्मा के प्रति भी करूणा है, परन्तु इस समय मैं निरूपाय हूँ। मुझे अनिच्छा से और दुःखित मन से भी आपके वध का पाप करना पड़ेगा।
वधस्थल पर ले जाकर चांडाल ने दुःखी हृदय से मुनि का वध किया और उनके शरीर की खाल उतार ली। परन्तु वे शान्तमूर्ति मुनिराज, परमात्मा के ध्यान से तनिक भी विचलित नहीं हुए। शरीरनाश के समय अपनी आत्मा परमात्मा के साथ ऐसा अनुसन्धान किया कि परमात्मा का ध्यान करते हुए उन्हें मृत्यु का दुःख अनुभव ही नहीं हुआ। मुनि के मन में किसी के प्रति न क्रोध भाव उत्पन्न हुआ और न वैरभाव ही। खंधक मुनि ने इस प्रकार की उच्च भावना भाते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया। जिस उद्देश्य के लिए उन्होंने संसार का त्याग किया था, वह आत्म श्रेय साधन का उद्देश्य सिद्ध करके मोक्ष प्राप्त किया। इस प्रकार खंधक मुनि सिद्ध बुद्ध और मुक्त हो गए।
चांडाल वध करके मुनि की खाल लेकर राजा के सामने उपस्थित हुआ और अथ
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