________________
परमात्मा बनने की कला
चार शरण
होता है। यहाँ अपनी आत्मा की निन्दा स्वयं को करनी होती है। आत्मनिन्दा करते-करते तो वैराग्य पाकर केवलज्ञान तक पहुँच जाते हैं।
आत्मनिन्दा करके कल्याण को प्राप्त करने वाले राजा-रानी की कहानी के लिए हम सहनशीलता की प्रतिमूर्ति खंधक मुनि का उदाहरण यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जो कि सभी के लिए आदर्श है
खंधक मुनि की कथा
खंधक राजकुमार के जीवन में मुनिवर के उपदेश का प्रभाव पड़ा। खंधक कुमार ने उत्साह और वैराग्य के साथ माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर संयम स्वीकार किया। पिता श्री ने विचार किया - खंधक ने आज तक किसी प्रकार का कष्ट सहन नहीं किया है। अतएव मुझे ऐसी व्यवस्था कर देनी चाहिए कि उसे किसी प्रकार का अभाव, उपद्रव न सताये। इस प्रकार विचार करके पिता ने पुत्र मोह से प्रेरित होकर पाँच सौ सैनिकों की व्यवस्था कर दी। ऐसा प्रबन्ध किया गया कि खंधक मुनि को इस बात का पता न लगे और उनकी बराबर रक्षा होती रहे । खंधक मुनि को गुप्त रूप से रक्षा करने वाले सैनिकों का पता नहीं था। वे तो यही जानते थे कि मेरी तो रक्षा करने वाली मेरी आत्मा है, अन्य कोई नहीं है। इस प्रकार खंधक मुनि तपश्चर्या करके आत्मकल्याण करने लगे। आत्मा को भावित करते हुए ग्रामानुग्राम विचरने लगे।
विहार करते-करते वे अपनी सांसारिक बहिन के राज्य में पधारे। उनके पीछे गुप्त रूप से चल रहे सैनिक विचार करने लगे कि अब खंधक मुनि अपनी बहिन के राज्य में आ पहुँचे हैं, अब किसी प्रकार के उपद्रव की सम्भावना नहीं है । इस प्रकार निश्चिंत होकर सैनिक दूसरे कार्यों में लग गये। इधर खंधक मुनि आत्मा और शरीर का भेदविज्ञान हो जाने के कारण तपश्चरण द्वारा शरीर को सुखाकर आत्मा को बलवान बनाने में लगे हुए थे।
एक बार खंधक मुनि भिक्षाचरी करने के लिए राजमहल के पास से निकले। उस समय राजा और रानी राजमहल की अटारी पर बैठ कर नगर निरीक्षण करने के साथ ही मनोविनोद कर रहे थे। रानी की दृष्टि अकस्मात् मुनि के ऊपर पड़ गई। मुनि को देखते ही रानी विचारने लगी। मेरा भाई भी इन्हीं मुनि की तरह भ्रमण करता होगा। इस तरह विचारमग्न होने के कारण रानी क्षणभर के लिए मनोविनोद और वाणी - विलास को भूल गई। राजा ने देखा - साधु को देखकर यह मुझे भूल गई है। दूसरे के विचारों में डूब गई है। इस साधु के प्रति रानी का प्रेमभाव तो नहीं होगा? इस विषय में दूसरों की सलाह लेना भी अनुचित है। अतएव किसी और से पूछने की अपेक्षा इस साधु को समाप्त कर देना ही ठीक
Jain Education International
133
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org