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परमात्मा बनने की कला
चार शरण
'मनोवांछित फल की प्राप्ति
हे नाथ! मैं पामर हूँ, जिससे संयम स्वीकार नहीं कर सकता और संसार में संपत्ति या स्त्री आदि के बिना भी नहीं चलता, इसलिए दुर्भाग्यवश कमाने तो जाना ही पड़ता है। धनादि भी भाग्यानुसार ही मिलने वाले हैं। तो भी हे नाथ! आप की कृपा से संपत्ति ऐसी मिले, जिससे कि धर्म साधना में कोई अवरोध न आए। हे नाथ! आपकी कृपा से न्याय-नीतिपूर्वक उतना धन मिले कि जिससे मैं सामायिक आदि धर्मक्रिया स्वस्थ चित्त से कर सकूँ तथा दूसरे अनेक अनर्थ से बच सकूँ, जिससे मेरा मन मोक्षमार्ग से लेश मात्र भी न हटे।
यह एक श्रावक की प्रार्थना है जो संयम अंगीकार नहीं कर सका हो।
जिज्ञासा- वीतराग परमात्मा के पास रागवर्धक स्त्री, धन या निरोगी शरीर आदि की प्रार्थना करना क्या योग्य है?
तृप्ति- सांसारिक सुख को भोगने और मौज करने के लिए स्त्री, धनादि को भगवान के पास मांगना योग्य नहीं है, परन्तु जिनको मोक्ष की साधना करनी है और ऐसा सत्व नहीं है कि सर्वसंग का त्याग कर सके, इस कारण जिसे संसार में रहना पड़ता है, उसे संसार चलाने के लिए धनादि की जरूरत पड़ती है। ये चीजें जब तक न मिलें, तब तक उनके अभाव में मन अस्वस्थ हो और जिसके कारण मन संक्लेश से घिरा रहता हो,
आंधि-व्याधि, उपाधियों के कारण मन आर्त्त-रौद्रध्यान से ग्रस्त हो जाता हो, तब ऐसे साधकों द्वारा अपनी साधना को जीवंत रखने या आगे बढ़ाने के लिए तथा अशुभ ध्यान से बचने के लिए मात्र मन की स्वस्थता स्थिर करने की मांग की जाए तो वह अयोग्य नहीं है। लोक-विरुद्ध कात्याग
हे नाथ! अनादिकालीन कुसंस्कारों के कारण मुझमें स्वयं तो शक्ति नहीं है कि इस निंदा आदि लोक-विरूद्ध कार्य से बच सकूँ, फिर भी हे परमात्मा! आपके प्रभाव से मुझमें ऐसा सामर्थ्य प्रकट हो, जिससे कि मैं लोक-विरूद्ध कार्य का त्याग कर सकूँ। गुरुजनों की पूजा
___ हे परमेश्वर! आपकी कृपा से मेरे मानादि कषाय नष्ट हों और मुझे गुरुजन की
पूजा प्राप्त हो।
परोपकार
हे नाथ! अनादिकाल से आत्मा में स्थित यह स्वार्थ या संकुचित वृत्ति मुझे
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