________________
परमात्मा बनने की कला
. गुरुजनों की पूजा
5.
चार शरण
6.
परोपकार का अनुकरण
8. सुगुरु के वचनों का सदैव पालन |
7. सुगुरु का योग
हे भगवान! आपके प्रभाव से मुझे भव-निर्वेद आदि गुणों की प्राप्ति हो । भव-निर्वेद आदि जिन आठ वस्तुओं की प्रार्थना करनी है, वे मुख्यतया आंतरिक भाव हैं। हे भगवान! आप गुणों के भण्डार, करूणा के सागर हैं, अचिंत्य शक्ति से युक्त हैं, इसलिए हे प्रभु! आपके प्रभाव से मुझे भव-निर्वेद आदि की प्राप्ति अवश्य होगी, ऐसा मुझे विश्वास है। ऐसे दृढ़ विश्वास और श्रद्धापूर्वक साधक प्रार्थना करता है।
हे भगवान । मुझे सुखी होना है। सच्चा सुख मोक्ष में है । मोक्षमार्ग पर चलने के लिए गुणों की प्राप्ति अनिवार्य है, इसलिए मोक्ष के लिए जरूरी गुणों की प्रगति के लिए मैं सहृदय प्रार्थना करता हूँ। हृदयपूर्वक की गई मेरी इस प्रार्थना को आप सुनें और हे कृपानिधान! कृपा करके मुझे इन गुणों का दान करें।
संसार के प्रति अरुचि
हे नाथ! मुझ पर कृपा करें और विषय कषाय से भरे इस संसार पर मुझे उद्वेग पैदा करवाएँ जिससे मैं मोक्ष और उसके अनन्त सुखों के लिए कुछ यत्न कर सकूँ। जब तक इस संसार का मेरा राग कम नहीं होगा, उसकी आसक्ति कम नहीं होगी, तब तक मुझे धर्म में रस नहीं पड़ेगा, उसमें रुचि नहीं बढ़ेगी और मेरे कर्म का अन्त नहीं आएगा। इसलिए हे प्रभु | सबसे पहले आप मुझे भव का वैराग्य प्राप्त करवाएँ, जिससे वास्तविक अर्थ में मैं धर्म का आरंभ कर सकूँ।
मोक्ष मार्ग का अनुसरण करना
हे नाथ! अनादिकाल से मेरा जो कुमार्ग-गमन है, अनादिकाल की जो मेरी टेढ़ी चाल है, उसे रोक कर आप मुझे मोक्षमार्ग की ओर गमन करवाएँ। आप मेरी वृत्ति और प्रवृत्ति को मोक्षमार्ग की ओर मोड़ें।
Jain Education International
प्रभु! मैंने धर्म तो बहुत बार किया है, परन्तु वह भी इस लोक या परलोक के सुख के लिए ही । तप-त्याग भी बहुत किया है, परन्तु वह भी मानादि कषाय के लिए; परंतु धर्म करके मुझे कषायों का त्याग करना है, मुझे आत्मा का आनन्द प्राप्त करना है, ऐसी भावना से मैने कभी धर्म नहीं किया होगा । इसलिए हे विभु ! सबसे पहले मुझे आप आत्माभिमुख बनाएँ । आत्मा के आनन्द के लिए तप त्याग में प्रयत्न करवाएँ तो ही मुझमें मार्गानुसारिता नाम का गुण प्रकट होगा।
120
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org