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परमात्मा बनने की कला
चार शरण
'है।' -राजा बोला 'तो उसके टुकड़े-टुकड़े करके तुम मुझे अग्नि दिखा सकते हो?' -केशी स्वामी
ने पूछा।
___ राजा क्षण भर के लिए सोच में पड़ गया। केशी स्वामी बोले- 'राजन! अरणी काष्ठ के टुकड़े करने पर अग्नि दिखाई भले न देती हो, किंतु इससे ऐसा निर्णय करना कि उसमें अग्नि नहीं है, यह तो मात्र अज्ञानताजनित बात है। दूध में घी नहीं दिखाई देता, इससे क्या यह मानेंगे कि दूध में घी नहीं है?'
प्रदेशी राजा का गर्व खण्डित होने लगा। आज प्रथम बार कोई उसे निरुत्तर कर रहा था। फिर भी उसने हार न मानते हुए प्रश्न किया- 'यदि आत्मा है तो जीवित या मृत व्यक्ति के भार में अंतर क्यों नहीं होता?'
केशी कुमार ने सहजता से प्रत्युत्तर देते हुए कहा- 'लुहार की धमणी में हवा भरने के बाद एवं हवा रहित धमणी के वजन में कोई फर्क नहीं होता है, ठीक वैसे ही देह में आत्मा होने पर एवं न होने पर वजन में फर्क नहीं पड़ता है।'
प्रदेशी राजा का मन स्वच्छ होने लगा था। उसने अन्तिम प्रश्न करते हुए कहा'प्रभु! मैंने एक अपराधी को वायुरोधी (एयर टाइट) कोठरी में बंद करवा दिया था। उससे वह मर गया एवं उसके मृतदेह में हजारों कीड़े पैदा हो गये। सवाल यह है कि वायुरोधी कोठरी में से आत्मा बाहर कैसे निकली एवं हजारों कीड़ों की आत्मा ने अन्दर प्रवेश कैसे किया?' .: 'इसमें क्या आश्चर्य है राजन्...? जहाँ अज्ञानता होती है वहीं आश्चर्य होता है। मैं तुमसे पूछता हूँ कि वायुरोधी कोठरी में बैठकर यदि शंख बजाया जाए तो उसकी आवाज बाहर आएगी या नहीं?'
'. 'आवाज तो आएगी ही।' - ''जब कोठी में कोई छिद्र नहीं था तो आवाज बाहर कैसे आएगी? और यदि आवाज बाहर आ सकती है तो आत्मा बाहर क्यों नहीं आ सकती है?' केशी कुमार ने राजा को समझाते हुए कहा- 'राजन्! आत्मा है किन्तु वह अरूपी होने से प्रत्यक्ष भले नहीं दिखाई देती हो, किन्तु प्रमाणों से वह सिद्ध होती है।' ... राजा प्रदेशी निरुत्तर हो गया। उसने केशी कुमार मुनि के चरण पकड़ लिए'प्रभु... आपने मुझे संसार-सागर में डूबने से बचा लिया, अन्यथा में भवसागर में डूब
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