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परमात्मा बनने की कला
चार शरण
केशीकुमार विराजमान थे। राजा ने जब मुनि को देखा तो उसके मन में गर्व आ गया। उसने महामुनि केशीकुमार को हाथ तक न जोड़े। बल्कि गर्व सहित बोला- 'हे मुनि। तुम वृथा कष्ट क्यों सहन करते हो? इस दुनिया में धर्म नाम की कोई वस्तु है ही नहीं । '
केशीस्वामी बोले- 'तुम किस आधार पर यह कह रहे हो ?'
राजा ने कहा- 'मेरी माता धर्मनिष्ठ थी। उसके मृत्यु के समय मैने उससे कहा था कि यदि धर्म के प्रभाव से तू स्वर्ग में जाए तो मुझे वहाँ के सुखों के बारे में बताना । मेरे पिता जी नास्तिक थे। उनकी मृत्यु के समय मैने उनसे कहा था कि यदि अधर्म से नरक की प्राप्ति हो तो आप मुझे आकर बताना । किन्तु आज तक न माता आई, न पिता आए। अतः मैने निर्णय किया कि न तो स्वर्ग है और न नरक । स्वर्ग और नरक की बातें आकाश पुष्प की तरह मात्र काल्पनिक हैं। '
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राजा प्रदेशी की बात श्रवणकर महाश्रमण केशीकुमार ने धीर, वीर, गंभीर वाणी से कहा- 'राजन् ! तुम्हारा निर्णय अज्ञानता पूर्ण है। यह वास्तविक सत्य है कि तुम्हारी माता श्राविका धर्म का पालनकर स्वर्ग में गई हैं एवं तुम्हारे पिता जी नास्तिक होने के कारण अधर्म करके नरक में गए हैं। '
केशीस्वामी ने दृढ़ता के साथ अपनी बात प्रस्तुत करते हुए कहा- 'तुम्हारी माता तुम्हारे पास स्वर्ग के सुखों का बयान करने नहीं आई, इसका कारण वहाँ के अत्यधिक सुख हैं। देवलोक में व्यक्ति सुखासन्न होने के कारण वह अपने वचन का पालन करने में कायर बन जाते हैं एवं तुम्हारे पिता जी नरक से तुम्हें वहाँ के दुःखों के बारे में बताने नहीं आए। इसमें उनकी पराधीनता कारणभूत है । नरक का कोई भी जीव कदापि नरकागारों से बाहर नहीं जा सकता है। '
केशीस्वामी की बात श्रवण कर उत्तेजित हो राजा प्रदेशी ने नया प्रश्न खड़ा करते हुए कहा- 'आत्मा जैसी कोई वस्तु जब संसार में नहीं है तो यह परलोक कहाँ से आया ?' महाश्रमण ने पूछा- 'तुम किस आधार पर कहते हो कि आत्मा नहीं हैं ? '
'मुनिवर ! इसके लिए मैने कई प्रयोग किए जैसे, किसी चोर को जब मृत्युदण्ड दिया गया, तब उसकी देह के तिल बराबर टुकड़े-टुकड़े करके मैने देखे तो भी मुझे आत्मा दिखाई नहीं दी | यदि आत्मा होती तो अवश्य दिखाई देती ?' प्रदेशी राजा बोला |
केशीकुमार ने कहा- 'राजन् ! यह सोचना अज्ञानता भरा है । मैं तुमसे ही पूछता हूँ कि अरणी काष्ठ में अग्नि है या नहीं ?"
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