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परमात्मा बनने की कला
चार शरण आत्मा के स्वाभाविक गुणों का आस्वादन लेते हैं, उसमें रमण करते हैं। दुःख चला गया है. और सम्पूर्ण सुख प्रकट हो गया है। केवलज्ञानी सर्वज्ञ बन गये। तीनों काल में ऐसा कोई भी समय नहीं है, जिस समय की वस्तु, घटना या पदार्थ को वे नहीं जानते हों। अर्थात् प्रत्येक ज्ञेय पदार्थ, जानने योग्य पदार्थ को जानते हैं, वे ही सर्वज्ञ हैं। सर्वज्ञता की प्राप्ति मूल्यवान वस्तु की प्राप्ति की तरह कठिन पुरूषार्थ से प्राप्त होती है। सिद्धपुर अर्थात् मोक्षा
पैंतालीस लाख योजन प्रमाण की सिद्धशिला है जो 14 राजलोक में सबसे ऊपर, लोक के अन्त में स्थित है। उसके पश्चात् अलोकाकाश है। जब. कर्मों से आत्मा सम्पूर्ण मुक्त बनती है, उसी समय आत्मा सिद्धपुर पहुँच जाती है, आत्मा उससे आगे अलोक में नहीं जा सकती है। जिनको किसी भी उपमा से उपमित नहीं कर सकते हैं, न किसी के सुखों से बराबरी या तुलना की जा सकता है, विश्व के सम्पूर्ण जीवों के सुखों को एकत्रित करें तो वह मात्र काल का सुख हुआ। तीनों काल के सुख से भी अनन्त गुणा सुख सिद्ध परमात्मा को होता है। जिनके सर्व प्रयोजन पूर्ण होते हैं। इस संसार में कोई भी इच्छा या कार्य बाकि नहीं हैं, संसार की अनन्त भ्रमणा समाप्त हो गई है। सर्वथा कृतकृत्य हो गये, ऐसे सिद्ध भगवन्त की मुझे शरण हो।
साधु भगवन्तों की शरण' हे मुनि भगवन्तों!!!
आप प्रशांत और गंभीरता के महासागर हैं। . आप सर्व प्रकार की पापप्रवृत्तियों से दूर हैं। आप पंचाचार के पालने में समुद्यत हैं। आप सर्व जीवों पर परोपकार करने में मग्न हैं। आप संसार के कार्यों से अलिप्त हैं। आप संसार सरोवर में पद्मकमल जैसे निर्मल हैं। आप हमेशा के लिए ध्यान और स्वाध्याय में तत्पर हैं। आप सदैव दूसरों का भला करने के लिए विशुद्ध विचारों में रमण करने वाले हैं। हे हितकारी! हे उपकारी! हे परमोपकारी! हे साधु भगवंत! जीवन की अंतिम श्वास तक आप ही की मुझे शरण हो।
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