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परमात्मा बनने की कला
चार शरण लगा। शुभ ध्यान में आरूढ़ हो गये, घनघाती कर्मों को क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया बालमुनि अईमुत्ता ने।
स्थविर मुनियों ने बालमुनि से कहा- 'चलो पर्षदा मैं बैठ कर प्रभु की देशना श्रवण करें।' बालमुनि अईमुत्ता स्थविर मुनियों के साथ चल पड़े। जैसे ही वे केवली भगवन्तों की पर्षदा के पास पहुँचे, अईमुत्ता मुनि उधर मुड़ गये। यह देख कर स्थविर मुनियों ने कहा- 'अरे बालमुनि! तुम उधर चलो। क्या तुम्हें मालुम नहीं कि वह केवली पर्षदा है।'
तब भगवान् महावीर ने फरमाया- 'मुनियों! केवली की आशातना मत करो!' स्थविर मुनि यह सुनकर चौंक पड़े! क्या फरमा रहे हैं भगवान्! क्या अईमुत्ता को केवलज्ञान हो गया?
___ परमात्मा ने फरमाया- 'हाँ, पापों का प्रायश्चित करते-करते अईमुत्ता मुनि को केवलज्ञान हो गया है। अब वे केवली हैं, इसलिए इसी पर्षदा में बैठेंगे।' कर्मरूपीकलंक से मुक्ति
सिद्ध भगवन्त कर्म कलंक से रहित होते हैं। इसलिए स्फटिक के समान अत्यन्त निर्मल बने हुए हैं। श्रद्धालुजन को जगत् की ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाले कर्म, कलंक रूप में प्रकाशित होते है। कर्म कलंक को दूर करने वाले जीव ही निश्चित रूप से महावीर
और विक्रमशाली होते हैं। क्योंकि कर्मों का अहिंसा, संयम और तप से सर्वनाश करने का - कार्य ही अत्यन्त कठिन है। सर्वपीड़ासे रहित
सर्व पीड़ा, विन, कष्ट इत्यादि सर्वथा नाश हो जाने से श्री सिद्ध भगवन्त सर्वथा बाधारहित बने हुए हैं। ये सभी प्रकार की ऊँची नीची विषमता, स्वरूप-हानि, विभाव आदि से परे हैं अर्थात्
1. सिद्ध भगवान् शरीर, कर्म आदि से एकदम रहित होने से उनको मान-अपमान, यश-अपयश, शाता-अशाता, इष्ट-अनिष्ट आदि विषमता नहीं हैं।
2. निज का अनन्त ज्ञान-सुखादि मय स्वरूप पूर्णतः खिला हुआ होता है। इसमें स्वरूप हानि नहीं हैं।
3. राग-द्वेष-अज्ञान-हास्य-भय-दीनता-मद-माया-काम-क्रोध इत्यादि विभाव अर्थात् पराधीन भाव भी नहीं हैं।
मैं ऐसे सिद्ध प्रभु की मैं शरण में जाता हूँ। इस प्रकार समझकर कि 'कर्म है तभी
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