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परमात्मा बनने की कला .
चार शरण
समझा कर माता-पिता की इच्छा से एक दिन के लिए राजा बनकर अईमुत्ता ने भगवान् महावीर के पास संयम ग्रहण कर लिया। अब वह राजकुमार से अईमुत्ता मुनि बन गये। .
भगवान् महावीर ने बालमुनि अईमुत्ता को स्थवीर मुनियों को सौंप दिया। स्थविर मुनियों के पास रहकर अईमुत्ता मुनि शास्त्राभ्यास करने लगे।
एक दिन की बात है कि बालमुनि स्थविरों के साथ स्थंडील गए थे। अन्य मुनि दूर अन्दर झाड़ियों में छुपकर अपनी शंका निवारण कर रहे थे, तब बालमुनि अईमुत्ता निपट चुके थे। वे नदी के किनारे पर खेल रहे बच्चों को एकटक दृष्टि से देख रहे थे।
मेघवृष्टि के कारण गड्ढों में पानी भर गया था। वहाँ बच्चे कागज की नाव तिराने का खेल खेल रहे थे। बालमुनि का मन हाथ में न रहा और उन्होंने अपने पात्र को पानी में छोड़ दिया- 'यह मेरी नौका पानी में तैर रही है।' इतना बोलकर वे हर्ष से नाच उठे।
इतने में स्थविर मुनि वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने अईमुत्ता मुनि को पानी में नाव चलाते देखा और बोल उठे- 'अरे अईमुत्ता...। तुम यह क्या कर रहे हो? तुम साधु होकर अप्काय (पानी) के जीवों की हिंसा कर रहे हो। असंख्य जीवों का नाश कर तुमने घोरातिघोर पाप बान्ध लिया है। चलो भगवान् के पास चलकर तुम्हारे पापों के प्रायश्चित का प्रतिक्रमण करो।' . बालमुनि चौंक उठे स्थविर मुनियों की बात सुनकर, क्योंकि वे पापभीरू थे। पाप हो गया तो घबरा गए, उफ...। मैंने पानी के जीवों की विराधना कर दी। भयंकर पाप किया है आज मैंने। अब मेरा क्या होगा? प्रमादवश हो गए पाप का पूरे रास्ते चलते-चलते पश्चाताप करते हुए बालमुनि भगवान् महावीर के पास आए। स्थविर मुनियों ने कहा'चलो अपने पापों का प्रतिक्रमण कर लो।'
बालमुनि अईमुत्ता अपने पापों का प्रतिक्रमण करने लगे। 'इरियावहियं सूत्र' लघु प्रतिक्रमण कहलाता है। इस सूत्र के द्वारा जीवों के साथ क्षमापना की जाती है। अईमुत्ता मुनि इरियावहियं करने लगे। इरियावहियं बोलते बोलते 'पणगदग' यानि पानी के जीवों की विराधना की, शब्द आते ही अईमुत्ता मुनि धुज उठे! आगे बढ़ने के बजाय वे उन्हीं शब्दों का बारम्बार उच्चारण करने लगे, पणग-दग पणग...दग पणग...दग एवं अर्थ की विचारधारा- 'अहो अप्काय के जीवों की विराधना द्वारा आज मुझे कितना पाप लगा?' आँखों में आँसू आ गए। जीव विराधना खटकने लगी।
___ अईमुत्ता मुनि पापों का प्रायश्चित कर रहे थे। पणग...दग... का उच्चारण एवं अर्थ की विचारणा एवं अन्तःकरण पूर्वक का पश्चाताप होने से कर्मों का निकन्दन निकलने
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