________________
63
तृतीय अध्याय | कुभोगभूमि मनुष्य
•
1. एक जाँघ वाले, एक टाँग वाले, पूंछ वाले, गूंगे, सींग वाले मनुष्य 2. खरगोश के समान, साँकल के समान लम्बे कान वाले, एक कान वाले
(जिसे ओढ़ व बिछा भी लें) मनुष्य 3.घोड़े, सिंह, कुत्ता, बकरा, हाथी, गाय, मेढ़ा, मछली, भैंसा, सुअर, व्याघ्र,
कौआ, बन्दर के समान मुख वाले मनुष्य 4. मेघ, बिजली, काल (मगर), दर्पण मुख वाले मनुष्य
(अन्य विशेषता 1. गुफाओं में व पेड़ों पर रहते हैं। . 2. मिट्टी का, फूलों का व फलों का आहार करते हैं। 3. सबकी आयु 1 पल्य है। - भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुभ्यः।।37॥ सूत्रार्थ - देवकुरु और उत्तरकुरु के सिवा भरत, ऐरावत और विदेह - ये सब __ कर्मभूमियाँ हैं।।37॥
ढाईद्वीप में कर्मभूमि एवं भोग भूमि 15 कर्म- जहाँ असि, मसि, कृषि आदि कार्य हो भूमियाँ
पाँच भरत - 5 पाँच ऐरावत - 5 पाँच विदेह - 5
कुल - 15 30 भोग - जहाँ 10 प्रकार के कल्पवृक्षों से भोग सामग्री प्राप्त हो भूमियाँ जघन्य भोगभूमि - हैमवत एवं हैरण्यवत - 2X5 = 10
मध्यम भोगभूमि - हरि एवं रम्यक - 2X5 = 10 उत्कृष्ट भोगभूमि - देवकुरु एवं उत्तरकुरु - 2X5 = 10
कूल = 30
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org