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________________ 15 प्रथम अध्याय ऋजुमति - विपुलमति में अंतर ऋजुमति विपुलमति । चिन्तित पदार्थ को जानता है चिन्तित, अचिन्तित, अर्धचिन्तित को जानता है आत्मा की कम विशुद्धता होती है | अधिक विशुद्धता होती है संयम परिणामों में गिरावट नहीं हो सकती है गिरावट हो सकती है (प्रतिपाती) | (अप्रतिपाती) | उसीभव मेंमोक्षजाने का नियम नहीं है | नियम से उसी भव में मोक्ष जाते हैं | विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनःपर्यययोः।।25।। सूत्रार्थ - विशुद्धि, क्षेत्र, स्वामी और विषय की अपेक्षा अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान में भेद है।।25।। अवधि-मन:पर्यय ज्ञान में अंतर अवधिज्ञान । मनःपर्ययज्ञान | विशुद्धि - | कम विशुद्ध । अधिक विशुद्ध क्षेत्र उत्पत्ति क्षेत्र त्रस नाड़ी विषय क्षेत्र | समस्त लोक स्वामी चारों गति के सैनी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव मनुष्य लोक 45 लाख योजन का घनप्रतर रूप क्षेत्र -कर्मभूमि के गर्भज मनुष्यों को एवं -जो संयमी हो एवं -जो वर्धमान चारित्र सहित हो एवं -जिसके 7 ऋद्धियों में से कम से कम 1 ऋद्धि हो अवधिज्ञान के विषय का अनंतवाँ भाग (मन के विकल्प ज्यादा सूक्ष्म होते हैं) विषय | परमाणु तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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