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प्रथम अध्याय ऋजुमति - विपुलमति में अंतर ऋजुमति
विपुलमति । चिन्तित पदार्थ को जानता है चिन्तित, अचिन्तित, अर्धचिन्तित
को जानता है आत्मा की कम विशुद्धता होती है | अधिक विशुद्धता होती है संयम परिणामों में गिरावट नहीं हो सकती है गिरावट हो सकती है (प्रतिपाती) | (अप्रतिपाती) | उसीभव मेंमोक्षजाने का नियम नहीं है | नियम से उसी भव में मोक्ष जाते हैं |
विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनःपर्यययोः।।25।। सूत्रार्थ - विशुद्धि, क्षेत्र, स्वामी और विषय की अपेक्षा अवधिज्ञान और
मन:पर्ययज्ञान में भेद है।।25।। अवधि-मन:पर्यय ज्ञान में अंतर
अवधिज्ञान । मनःपर्ययज्ञान | विशुद्धि - | कम विशुद्ध । अधिक विशुद्ध
क्षेत्र
उत्पत्ति क्षेत्र त्रस नाड़ी विषय क्षेत्र | समस्त लोक स्वामी चारों गति के
सैनी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव
मनुष्य लोक 45 लाख योजन का घनप्रतर रूप क्षेत्र -कर्मभूमि के गर्भज मनुष्यों को एवं -जो संयमी हो एवं -जो वर्धमान चारित्र सहित हो एवं -जिसके 7 ऋद्धियों में से कम से कम 1 ऋद्धि हो अवधिज्ञान के विषय का अनंतवाँ भाग (मन के विकल्प ज्यादा सूक्ष्म होते हैं)
विषय
| परमाणु तक
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